धर्म डेस्क: विश्वकर्मा पूजा 2025 इस वर्ष आज यानी बुधवार, 17 सितंबर (Vishwakarma Puja 2025) को मनाई जाएगी। वैदिक पंचांग के अनुसार यह पर्व सूर्य देव के कन्या राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ज्योतिषियों का मानना है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी तिथि (Ekadashi) पर इस बार कई शुभ और मंगलकारी योग बन रहे हैं।
ऐसे संयोग में भगवान विश्वकर्मा की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सफलता आती है। UP बेसिक शिक्षा परिषद से जारी अवकाश तालिका के अनुसार 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के चलते इस दिन सभी स्कूलों में छुट्ठी (School Closed) रहेगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ब्रह्माजी के मानस पुत्र और प्रथम शिल्पकार माने जाते हैं। सृष्टि के निर्माण से लेकर विभिन्न देवताओं के दिव्य अस्त्र-शस्त्र और महलों का निर्माण भी इन्हीं के द्वारा किया गया है। यही कारण है कि हर वर्ष उद्योग-धंधों, मशीनरी और औजारों की विशेष पूजा विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर की जाती है।
कहा जाता है कि इस दिन विधिवत पूजा और विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने से करियर और कारोबार में मनचाही सफलता मिलती है। साथ ही, जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की बाधाएं और संकट समाप्त हो जाते हैं। जो साधक श्रद्धापूर्वक इस दिन पूजा करता है, उसके जीवन में सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
इस प्रकार, 17 सितंबर को मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कर्मक्षेत्र और व्यापारिक जीवन में भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
दोहा
श्री विश्वकर्मा प्रभु वंदना,चरण कमल धरि ध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,दीजै दया निधान ॥
चौपाई
जय श्री विश्वकर्मा भगवान ।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
अष्टम वसु प्रभास-सुत नागर ।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥
अतुल तेज तुम्ही तो जग माहीं ।
कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
एकानन पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
तुम सबकी पूरण की आशा ॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
शतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥
अमृत घट के तुम निर्माता ।
साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
खान-पान हित भाजन नाना ।
भवन विभिषत विविध विधाना ॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
विविध महा औषधि सविवेका ॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
कियउ काज सब भये अशोका ॥
अद्भुत रचे यान मनहारी ।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
विज्ञान कह अंतर नाही ॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
मंगल-मूल भगत भय हारी ।
शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
चारो युग परताप तुम्हारा ।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥
इक सौ आठ जाप कर जोई ।
छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
पढाहि जो विश्वकर्मा-चालीसा ।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
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