
धर्म डेस्क। त्रेता युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का दिव्य विवाह सम्पन्न हुआ था। इस शुभ अवसर पर समस्त देवता विवाह के साक्षी बनने के लिए उपस्थित थे और सभी रस्में विधिपूर्वक निभाई गईं। आज एक ऐसे प्रसंग का वर्णन प्रस्तुत है, जिसमें बताया गया है कि राम–सीता विवाह में माता सीता के भाई का कर्तव्य किसने निभाया।
विवाह का अद्भुत प्रसंग
रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम–जानकी विवाह की तैयारियां चल रही थीं, तब त्रिदेवों सहित अनेक देवता वहां मौजूद थे। विवाह संस्कार के दौरान पुरोहित ने कन्या पक्ष की ओर से भाई की परंपरागत रस्मों के लिए सीता जी के भाई को बुलाने को कहा।
यह सुनकर सभा में मौजूद सभी लोग असमंजस में पड़ गए, क्योंकि सीता माता को पृथ्वी की पुत्री माना जाता था और उनके साथ कोई सगा भाई उपस्थित नहीं था। यह स्थिति देखकर पृथ्वी माता भी व्याकुल हो उठीं।
एक युवक ने मांगी अनुमति
इसी समय सांवले वर्ण का एक युवक खड़ा हुआ और विनम्रता से बोला कि वह सीता जी के भाई के रूप में यह कर्तव्य निभाना चाहता है। युवक को आगे आते देख राजा जनक विचलित हो गए और उन्होंने उसका परिचय पूछना चाहा। उस युवक ने कहा कि वह इस दायित्व के योग्य है, और उसकी पहचान के बारे में ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र से पुष्टि की जा सकती है।
मंगल देव का परिचय
वह युवक कोई और नहीं, बल्कि स्वयं मंगल देव थे, जो पृथ्वी माता के पुत्र माने जाते हैं। चूंकि सीता माता भी पृथ्वी की ही अवतार थीं, इसलिए रिश्ते में मंगल देव सीता के भाई हुए। यही कारण था कि उन्होंने स्वयं यह भूमिका निभाने की इच्छा जताई।
इस प्रकार सम्पन्न हुआ विवाह
मंगल देव नवग्रहों के साथ वेश बदलकर विवाह में उपस्थित हुए थे। ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने राजा जनक को उनका वास्तविक परिचय बताया। इसके बाद उनकी अनुमति से मंगल देव ने जानकी जी के भाई के रूप में पूरी रस्मों का निर्वाह किया और इसी प्रकार भगवान श्रीराम तथा माता सीता का विवाह संपन्न हुआ।
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