धर्म डेस्क, इंदौर। आचार्य चाणक्य ने जीवन में सफलता पाने के लिए गुरु के महत्व के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जीवन में सफल होने के लिए गुरु ही हमेशा मददगार होता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि गुरुजनों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। हर गुरु अपने शिष्य के लिए हित में सोचता है। वे कभी उसका अहित नहीं करते। इसलिए यदि उनके हृदय की भावना को शिष्य न समझ सके तो भी उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। आलोचना का अर्थ व्यक्ति के दोषों को ढूंढ़ना है। अतः अपने गुरुजनों में दोष ढूंढ़ना मनुष्य की मूर्खता है।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि मनुष्य को चाहिए कि वह दुष्टता को स्वीकार न करे। मनुष्य को नीचता का कभी आश्रय नहीं लेना चाहिए। उसका कर्तव्य है कि वह सदैव नीच व्यक्ति से दूर रहे। दूसरों की निंदा करना, लड़ाई-झगड़ा करना, असत्याचरण करना आदि नीच कार्य मानव को उसके उच्च आदर्शों से गिराते हैं, इसलिए उसे चाहिए कि वह इस प्रकार के पाप कार्यों से पृथक् रहे।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में उल्लेख किया है कि धूर्त मनुष्य का कोई मित्र नहीं होता। जो व्यक्ति सज्जन लोगों से दुर्व्यवहार करता है, वह खुद अपने मित्रों में कमी देखता है। ऐसे व्यक्ति को समय आने पर रिश्तेदार व परिजन भी छोड़ जाते हैं। सज्जन व्यक्ति ही किसी को परखने के बाद मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं। धूर्त व्यक्ति स्वभाव से ही सज्जन लोगों का शत्रु होता है, इसलिए समझदार व्यक्ति को चाहिए कि दुष्ट, नीच और धूर्त व्यक्तियों से कभी सम्पर्क स्थापित न करें।
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