धर्म डेस्क, इंदौर। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि अपने से अधिक समृद्ध तथा अपने समान बल वाले व्यक्ति के सभी भी शत्रुता नहीं करनी चाहिए। आचार्य चाणक्य के मुताबिक अपने से बलवान व्यक्ति के विवाद करना वैसा ही होता है, जैसे हाथियों के झुंड द्वारा पैदल सेना को कुचलवा देना। आचार्य चाणक्य के मुताबिक जो व्यक्ति जानबूझकर अथवा अज्ञानवश किसी बलवान व्यक्ति पर आक्रमण करता है, तो उससे आक्रमण करने वाले व्यक्ति का ही नाश होता है। यह बिलकुल इसी प्रकार का कार्य है जैसे विशाल पत्थर की शिला से अपना माथा टकराना।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस प्रकार दो कच्चे पात्र यदि आपस में टकराते हैं तो दोनों ही टूट जाते हैं, इसी प्रकार समान शक्तिशाली राजाओं में युद्ध दोनों के विनाश का कारण होता है।
चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि राज को चाहिए कि वह अपने शत्रुओं के प्रयत्नों अथवा उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर सावधानीपूर्वक नजर रखे। हर राजा का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने शत्रु राष्ट्र पर हर समय सतर्कतापूर्वक नजर रखे। उसे इस बात का ज्ञान भी होना चाहिए कि शत्रु राष्ट्र किस तरह की चालें चल रहा है। दूसरे राष्ट्रों से संधियों द्वारा उसे किस प्रकार का लाभ होने की संभावना है। राजा को यह भी पता होना चाहिए कि वह यह सब बातें अपने गुप्तचरों द्वारा जाने और अपनी तथा अपने राज्य की रक्षा की पूरी सावधानी बरतें।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, अपनी विजय चाहने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने शत्रु से संधि अथवा युद्ध आदि प्रत्येक अवस्था में दुश्मन के प्रयत्नों पर पूरी तरह दृष्टि रखे।
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