धर्म डेस्क, इंदौर। Dhumravarna Avatar: हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता की उपाधि प्राप्त है। हर महीने भगवान गणेश को समर्पित चतुर्थी पर्व मनाया जाता है। इस दिन बप्पा की सच्चे मन से पूजा की जाए, तो तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं।
असुरों का नाश करने के लिए भगवान गणेश ने अलग-अलग अवतार धारण किए हैं। गणेश जी के अंतिम और आठवें अवतार धूम्रवर्ण है। इस अवतार का जन्म देवताओं सहित संपूर्ण ब्रह्मांड को अहंतासुर नामक राक्षस से मुक्त कराने के लिए हुआ था। आइए, जानते हैं कि इससे जुड़ी पौराणिक कथा कौन-सी है।
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने एक बार सूर्यदेव को कर्माध्यक्ष का पद दिया था। इससे उसमें अहंकार आ गया। यह भाव आने के कारण सूर्यदेव को अचानक छींक आ गई। इस छींक से एक राक्षस प्रकट हुआ। यह राक्षस बहुत शक्तिशाली था। वह एक राक्षस था, इसलिए गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन गया। उसका नाम अहंतासुर था। यह राक्षस संपूर्ण ब्रह्मांड पर राज करना चाहता था। अहंतासुर ने अपनी यह इच्छा शुक्राचार्य से व्यक्त की। उन्होंने अहंतासुर को श्री गणेश मंत्र की दीक्षा दी। दीक्षा लेने के बाद वो वन में चला गया और पूरी श्रद्धा से गणेश जी की कठोर तपस्या करने लगे।
अहंतासुर ने कई वर्षों तक श्री गणेश की तपस्या की। भगवान श्रीगणेश उसकी भक्ति देखकर प्रकट हुए। उन्होंने अहंतासुर से वरदान मांगने को कहा, तब अहंतासुर ने उनसे ब्रह्मांड के साम्राज्य के साथ अमरता और अजेयता का वरदान भी मांगा। गणेश जी ने उसे मुंह मांगा वरदान दे दिया।
अहंतासुर को यह वरदान प्राप्त हुआ देखकर शुक्राचार्य बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद अहंतासुर को राक्षसों का राजा बना दिया गया। अहंतासुर का विवाह हुआ और उसके दो पुत्र भी हुए। अहंतासुर ने अपने ससुर और गुरु के साथ विश्व विजय की योजना बनाई। अपनी इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने काम भी शुरू कर दिया। उसने एक ऐसा युद्ध शुरू कर दिया, जिससे हर जगह अराजकता फैल गई।
अहंतासुर ने धरती पर अधिकार कर लिया। फिर उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवता भी उसका विरोध नहीं कर सके। उसने स्वर्ग पर भी कब्जा कर लिया। फिर उसने पाताल लोक और फिर नागलोक पर भी कब्जा किया। सभी देवता भगवान शिव से इस समस्या से मुक्ति का उपाय जानना चाहते थे। शिव जी ने देवताओं से भगवान गणेश की पूजा करने को कहा। देवताओं ने भगवान गणेश की पूजा शुरू कर दी और भगवान गणेश धूम्रवर्ण के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। भगवान गणेश ने देवताओं को आश्वासन दिया कि वह उन्हें अहंतासुर के अत्याचारों से मुक्त कराएंगे।
देवर्षि नारद, धूम्रवर्ण का दूत बनकर अहंतासुर के पास गए। उन्होंने कहा कि अगर उसने अत्याचार नहीं रोके और गणेश जी की शरण में नहीं गया, तो उसका अंत निश्चित है। लेकिन अहंतासुर नहीं माना।
जब यह समाचार श्री धूम्रवर्ण को मिला, तो उन्होंने राक्षस सेना पर अंकुश लगा दिया। यह देखकर अहंतासुर भयभीत हो गया और शुक्राचार्य से उपाय पूछने लगा। दैत्य गुरु ने उसे श्री धूम्रवर्ण की शरण में जाने को कहा। यह सुनकर अहंतासुर श्री धूम्रवर्ण की शरण में गया और उनसे क्षमा मांगने लगा। इसके बाद ही श्रीगणेश ने उसे जीवनदान दिया। उन्होंने उससे सभी बुरे कर्मों को त्यागने के लिए भी कहा।
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