नईदुनिया, भोपाल (Upwas Ke Niyam)। ‘अधिकांश सनातनी उपवास रात में तोड़ते हैं, जो शास्त्रीय परंपराओं के विपरीत है।’ यह बात नईदुनिया के सवाल पर द्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज (Shankaracharya Swami Sadanand Saraswati) ने जवाहर चौक झरनेश्वर मंदिर में कही।
उन्होंने कहा कि व्रत एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक रखना चाहिए। शंकराचार्य ने एक श्लोक के माध्यम से कहा- "उपवृत्तस्य पापेभ्यो यस्तु वसो गुणैः सहः। उपवासः स विज्ञानः सर्वभोगविवर्जितः॥ (जो व्यक्ति पापों से निवृत्त होकर सद्गुणों के साथ वास करता है, वही ज्ञानयुक्त सच्चा उपवास करता है, जो सभी भोगों से रहित होता है।)
बता दें कि द्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज ने अपने तीन दिवसीय भोपाल प्रवास पर आए हैं। मंगलवार को वे भोपाल से रायपुर के लिए रवाना हो जाएंगे।
स्वामी सदानंद महाराज ने कहा कि उपवास में सभी भोग का निषेध किया गया है, इसलिए जब हम भोजन करते हैं तो भोजन के दो फल होते हैं- रजोगुणी स्वभाव और तमोगुणी। कैसा भोजन करते हैं उस पर हमारी मनोवृत्ति का निर्माण होता है।
फलाहार में सत्त्वगुण होते हैं और अन्न में रजोगुण होता है। फलाहार में सत्त्वगुण होने के कारण फलाहार का विधान किया गया। फलहार करना चाहिए।
शंकराचार्य ने कहा कि व्रत के तीन प्रकार के होते हैं- निर्जल, सजल और फलाहार। इनमें हर व्रत का विधान भिन्न होता है। जैसे-निर्जला एकादशी, भीमसेनी एकादशी निर्जला रखी जाती है।
अन्य एकदशी में कुछ व्रतधारी फलहार करते हैं। कुछ व्रतधारी पूरी एकादशी ही निर्जला रखते हैं। यह हर व्यक्ति के संकल्प व सामर्थ्य पर निर्भर करता है। यदि एक समय आहार करने का व्रत करते हैं तो गाय का दूध, फल आदि का सेवन कर सकते हैं।