Chanakya Niti। भारतीय दर्शन परंपरा में परिवार के सभी सदस्यों के कर्तव्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है। माता-पिता, भाई-बहन सभी का अपने बड़ों और छोटों के प्रति क्या-क्या कर्तव्य व अधिकार है, इस बारे में आचार्य चाणक्य ने भी चाणक्य नीति ग्रंथ में जिक्र किया है। यहां इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने पिता के कर्तव्यों के बारे में बताया है।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्र शत्रुरपण्डितः ।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, ऋणी पिता अपनी संतान का शत्रु होता है। यही स्थिति बुरे आचरण वाली माता की भी है। सुन्दर पत्नी अपने पति की और मूर्ख पुत्र अपने माता-पिता का शत्रु होता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि किसी भी कारण से अपनी संतान पर ऋण छोड़कर मरने वाला पिता शत्रु के समान होता है, क्योंकि उसके ऋण की अदायगी संतान को करनी पड़ती है।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि व्यभिचारिणी माता भी शत्रु के समान मानी गई है, क्योंकि उससे परिवार कलंकित होता है। इसी प्रकार अत्यधिक सुंदर स्त्री पति के लिए शत्रु के समान है, क्योंकि बहुत से लोग उसके रूप से आकृष्ट होकर उसे पथभ्रष्ट करने का प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार बुद्धिहीन बेटे के कार्यों की वजह से माता-पिता को रोज ही अपमान सहना पड़ता है। नालायक पुत्र के कारण परिवार को दुख व हानि होती है, इसीलिए वह परिवार का शत्रु है।
मूर्खः छन्दोऽनुवृत्तेन यथार्थत्वेन पण्डितम्।
आचार्य चाणक्य के यहां कहा है कि लोभी को धन देकर, अभिमानी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करके और विद्वान को सच्ची बात बताकर वश में करने का प्रयत्न करना चाहिए।
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