
धर्म डेस्क: इस वर्ष देव दीपावली का पर्व 5 नवंबर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा और यह दिन भक्ति तथा दिव्यता के अनेक शुभ योगों से परिपूर्ण है। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार इस बार कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सिद्धि योग, शिववास योग और अश्विनी-भरणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है, जिससे यह पर्व अत्यंत मंगलमय साबित होगा। धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ ज्योतिषीय स्थितियाँ भी इस दिन को विशेष बनाती हैं, इसलिए भक्तों में उत्साह की लहर है।
वर्ष 2025 की देव दीपावली पर केवल 2 घंटे 35 मिनट का विशेष शुभ मुहूर्त रहेगा। यही वह अवधि मानी जा रही है जब दीपदान, पूजा-अर्चना और विशेष धार्मिक कर्म सर्वाधिक फलदायी होंगे। इसके अतिरिक्त सिद्धि योग सुबह 11:28 बजे तक प्रभावी रहेगा; शास्त्रों के अनुसार इस काल में आरंभ किए गए कार्यों में सफलता मिलने की प्रबल संभावना होती है। इस समय का समुचित प्रयोग करके भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु लक्ष्मी, विष्णु और शिव की उपासना कर सकते हैं।

पूर्णिमा तिथि इस दिन शाम 6:48 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा और नक्षत्रों के अनुकूल मेल-मिलाप से स्नान, जप, दान तथा ध्यान-पूजा के पुण्य को बढ़ाया जा सकता है। देव दीपावली के अवसर पर अश्विनी और भरणी नक्षत्र का संयोग बनना विशेष रूप से लाभप्रद माना जाता है। अश्विनी नक्षत्र स्वास्थ्य, नई शुरुआत और जीवनीशक्ति का संकेत देता है, जबकि भरणी नक्षत्र धैर्य, करुणा और रचनात्मकता से जुड़ा है। इन दोनों नक्षत्रों के साथ पूर्णिमा का जुड़ाव शारीरिक-मानसिक संतुलन के लिये अनुकूल है।
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्यदेव तुला राशि में हैं और चंद्रदेव मेष राशि में स्थित हैं। इस संयोजन से ऊर्जा, संतुलन और उत्साह का सुंदर मेल बनता है, जिससे साधना और भक्ति के क्षण और भी अधिक फलदायी माने जाते हैं। विशेषकर शाम के समय जब गंगा के तट काशी में दीपों से जगमगाते हैं, तब आकाशीय ग्रह-स्थिति भी भक्तों के अनुभव को और दिव्य बना देती है।
शिववास योग का समावेश इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। परंपरा के अनुसार शिववास योग में की गई आरती, जाप और मंत्र-साधना का फल दोगुना होता है। इसलिए योग्य मुहूर्त का ध्यान रखते हुए शाम या निर्धारित काल में आराधना करना हितकर रहेगा। साथ ही दान-धर्म, वृद्धों को भोजन तथा जरूरतमंदों की सहायता करने का परिणाम भी इस दिन विशेष माना जाता है।
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संक्षेप में, 5 नवंबर 2025 की देव दीपावली न केवल दीपों का त्योहार है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, पुण्य संचय और मनोवैज्ञानिक शांति का अवसर भी है। केवल 2 घंटे 35 मिनट के शुभ मुहूर्त और कई अनुकूल योगों के चलते भक्तों को समयानुसार पूजा-विधान पूरा कर पुण्य प्राप्त करने का उत्तम अवसर मिल रहा है। भवतः/भवत्याः भक्ति और श्रद्धा के साथ यह पर्व अधिक मंगलमय हो।
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