धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आता है। इस साल 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
भक्त इस दिन अपने घरों में गणपति बप्पा की प्रतिमा लाकर उनकी पूजा करते हैं। लेकिन केवल पूजा करना ही पर्याप्त नहीं है मूर्ति का आकार, दिशा, रंग और स्थापना का समय भी बहुत महत्वपूर्ण है। सही मार्गदर्शन से घर में सुख, शांति और समृद्धि का प्रवाह बना रहता है। चलिए जानते हैं गणेश जी की स्थापना से जुड़े कुछ नियम।
गणेश स्थापना के लिए हमेशा मिट्टी से बनी मूर्ति का चयन करना चाहिए, ताकि उससे जल प्रदूषित न हो। इसके साथ ही अगर आप खुद से बप्पा की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं, तो इसके लिए नदी किनारे की शुद्ध काली मिट्टी, पीली मिट्टी और भूसे को मिलाकर मूर्ति बनानी चाहिए।
अगर आप घर में गणेश जी की स्थापना कर रहे हैं, तो इसके लिए दाहिनी ओर सूंड वाली मूर्ति चुननी चाहिए। वहीं अगर कार्यस्थल पर गणेश जी को स्थापित कर रहे हैं, तो इसके लिए बायीं ओर सूंड वाली मूर्ति शुभ मानी गई है।
बप्पा की मूर्ति को किसी भी रंग के आसन पर विराजमान (Ganesh ji sthapana niyam) किया जा सकता है। अगर आसान पीला या हरा होगा, तो ज्यादा शुभ रहेगा। बस ध्यान रखें कि आसन का रंग काला नहीं होना चाहिए।
गणेश जी की पूजा के दौरान उन्हें दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, जनेऊ, हल्दी, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फूल-फल, धूप, दीप, वस्त्र, दूर्वा, शमी के पत्ते आदि चढ़ाएं। प्रसाद में मोदक या फिर लड्डुओं का भोग लगाएं। इसके साथ ही पूजा में गणपति अथर्वशीर्ष, संकष्टनाशनम गणेश स्तोत्र और श्रीगणेश चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
"ऊं गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा"
गणेश गायत्री मंत्र - ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गणेश बीज मंत्र - "ऊ गं गणपतये नमः" (इस मंत्र का 108 बार जप करें)
दूर्वा जिसे दूब भी कहा जाता है, का गणेश जी की पूजा में विशेष महत्व माना गया है। औषधीय गुणों से भरपूर दूर्वा गणेश जी को अर्पित करने के पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है। कथा के अनुसार, जब गणेश जी ने अनलासुर दैत्य का वध कर उसे निगल लिया था, तब उनके पेट में जलन होने लगी। उस समय उन्हें दूर्वा का सेवन करवाया गया, जिससे जलन शांत हुई। इसलिए गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है।
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गणेश जी की पूजा के समय पीले कपड़े पहनना श्रेष्ठ होता है। गणेश जी के दर्शन हमेशा सामने से ही करने चाहिए, क्योंकि उनकी पीठ के पीछे दरिद्रता का वास माना जाता है। वहीं गणेश जी को तुलसी भी अर्पित नहीं की जाती। अगर संभव हो तो कलश की स्थापना भी जरूर करें।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। नईदुनिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। नईदुनिया अंधविश्वास के खिलाफ है।