धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej Vrat) भाद्रपद शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के लिए करती हैं। वहीं अविवाहित कन्याएं भी मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत कठोर और सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है क्योंकि इसमें न तो भोजन किया जाता है और न ही जल ग्रहण किया जाता है।
अविवाहित कन्याएं इस व्रत को योग्य पति की प्राप्ति और सुखद दांपत्य जीवन की कामना से करती हैं। माना जाता है कि मां पार्वती ने भी भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था और हरतालिका तीज का व्रत उसी परंपरा का प्रतीक है।
हरतालिका तीज पर हरे रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। हरा रंग प्रकृति, समृद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है। इसके अलावा पीले और लाल रंग के कपड़े भी शुभ माने जाते हैं। लेकिन इस दिन काले रंग के वस्त्र धारण करना अशुभ माना जाता है।
हरतालिका तीज व्रत को कठिन तपस्या माना गया है। मान्यता है कि व्रत के दिन दिनभर और रातभर जागरण करना चाहिए। सोने से व्रत का प्रभाव कम हो सकता है, इसलिए व्रती को पूरी रात भजन-कीर्तन और पूजा में समय बिताना चाहिए।
यह व्रत निर्जला होता है। महिलाएं अगले दिन सूर्योदय के बाद जल ग्रहण कर सकती हैं। हालांकि, स्वास्थ्य कारणों से यदि निर्जला व्रत संभव न हो, तो पूजा के बाद जल ग्रहण करने की अनुमति दी जाती है।
यह व्रत पूरी तरह निर्जला है, जिसमें फल या अन्न का सेवन भी वर्जित है। हालांकि, कई परिवारों में परंपरा है कि ब्रह्म मुहूर्त में सरगी के रूप में फल और मिठाई का सेवन किया जाता है।
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