नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। छठ महापर्व चार दिवसीय सूर्यषष्ठी की शुरुआत 25 अक्टूबर से होगी। इसके लिए व्रतधारियों ने सभी तैयारियां पूरी कर रही है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष से छठी को सूर्यषष्ठी का महापर्व 26 अक्टूबर को नहाय खाय यानी खरना की परंपरा और रीति रिवाज के साथ शुरू होगा। छठ पूजा का महापर्व प्रदेश के साथ देश के अन्य हिस्सों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला चार दिवसीय पर्व लोगों के लिए विशेष मान्यता रखता है। इस पूजा के दौरान 36 घंटे का निर्जला व्रत किया जाता है। पूर्वांचल, मिथिला, मगही, अवधि और भोजपुरी समाज के अध्यक्ष व मीडिया प्रभारी एमएम अंसारी ने बताया कि 25 अक्टूबर शनिवार को नहाय, खाय से इस दिन घर की साफ-सफाई कर स्वच्छता की जाएगी। इसके बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन तैयार किया जाता है। इसका सेवन व्रतधारी करते है।
26 अक्टूबर से इस दिन व्रतधारियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है। रोटी, गुड़ से बनी खीर का प्रसाद बनाकर सूर्य की आराधना की जाती है और 26 अक्टूबर को खरना भोग रस्म के साथ छठ पर्व का व्रत शुरू होगा। 26 अक्टूबर को शाम के समय डूबते सूरज को पहला अर्घ्य समर्पित किया जाएगा और रात में छठी माता की कथा सुनी जाएगी। 27 अक्टूबर को उदित सूर्य को गाय के दूध के साथ पानी में खड़े होकर अर्घ्य देकर महापर्व का समापन किया जाएगा और भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।
छठ पूजा के लिये बांस या पीपल का सूप, बांस से बनी डलिया, पानी वाला नारियल, गन्ना, सुथनी, शकरकंद, अदरख, नाशपाती, नींबू, शहद, पान, सिंदूर, चावल, कपूर, मिठाइयां और घर के बने पकवान जैसे ठेकुआ, खस्ता, पुआ, टीकरी, चावल के लड्डू आदि सामग्री की आवश्यकता होती है। यह छठ महापर्व 36 घंटे का निर्जला व्रत होता है। छठ पूजा का व्रत महिला और पुरुष दोनों करते हैं। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व का समापन होता है।
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