
मल्टीमीडिया डेस्क। पौराणिक शास्त्रों में श्रीयंत्र की बड़ी महिमा बताई गई है। मान्यता है कि श्रीयंत्र की स्थापना और इसकी पूजा- उपासना करने से विपुल धन की प्राप्ति होती है। श्रीयंत्र को बनवाने के बाद इसकी शुभ मुहूर्त में शास्त्रोक्त विधि से स्थापना की जाती है।
ऐसे करें श्रीयंत्र को सिद्ध
दीपावली को श्री यंत्र के निर्माण व पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहुर्त माना जाता है। इस दिन स्थिरलग्न में यंत्र निर्माण और पूजन करना चाहिये। दीपावली की रात गृहस्थ आसानी से श्री यंत्र सिद्ध कर सकते हैं। श्री यंत्र सिद्ध करने के लिए इस लक्ष्मीयंत्र का जप करें।
।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः ।।
इस लक्ष्मी मंत्र की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की विधि-विधान से स्थापना कर उसका पूजन करें। इससे वह सिद्ध हो जाएगा।
श्रीयंत्र सिद्ध करने की एक विधि यह भी है। शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को श्री यन्त्र को गंगा जल से स्नान करवाएं और पूजास्थल में स्थापित कर देवी लक्ष्मी का ध्यान लगाते हुए 'ओम श्रीँ' मंत्र का जप करें। इस मंत्र की 21 माला का जप पांच दिनों तक करना है। उसके बाद ये यन्त्र सिद्ध हो जाता है। इसके साथ ही श्रीयंत्र को सिद्ध करने के लिए माघ माह की पूर्णिमा, शिवरात्रि, शरद पूर्णिमा, सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण का मुहूर्त श्रेष्ठ होता है। हालांकि ग्रहण को सामान्यतः शुभ कर्मों के लिए सही नहीं माना जाता है लेकिन श्री विद्या पूरी तरह तांत्रोक्त विद्या है और तांत्रोक्त साधनाओं के लिए ग्रहण को श्रेष्ठतम मुहूर्त माना गया है।
इन मुहूर्तों के अलावा अक्षय तृतीया, रवि पुष्य योग, गुरू पुष्य योग, आश्विन माह को छोडकर किसी भी अमावस्या या किसी भी पूर्णिमा को भी शुभ समय मे यंत्र निर्माण, स्थापना और पूजन किया जा सकता है। श्रीयंत्र को सिद्ध करने के लिए वैशाख, ज्येष्ठ, कार्तिक, माघ आदि चंद्र महिनों को भी उत्तम माना गया है। इस यंत्र को गंगाजल और दूध से शुद्ध कर पूजा स्थान या कारोबारी प्रतिष्ठान में रखकर इसकी पूजा की जाती है।
सभी पूजित यंत्रों में श्रीदेवी का श्रीयंत्र सर्वश्रेष्ठ माना गया है। श्रीयंत्र को यंत्रों के राजा की उपाधि दी गई है। दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण और पूजन करने से मनोकामना सिद्ध होती है।
श्रीयंत्र का उल्लेख तंत्रराज, ललिता सहस्रनाम, कामकला विलास, त्रिपुरोपनिषद आदि विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। महापुराणों में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। महालक्ष्मी स्वयं कहती हैं – 'श्री यंत्र मेरा प्राण, मेरी शक्ति, मेरी आत्मा तथा मेरा स्वरूप है। श्री यंत्र के प्रभाव से ही मैं पृथ्वी लोक पर वास करती हूं।' श्रीयंत्र को यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है। ऋषि दत्तात्रेय व दुर्वासा ने श्रीयंत्र को मोक्षदाता कहा है। जैन शास्त्रों ने भी इस यंत्र का उल्लेख किया गया है।