श्रवण शर्मा, रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अनेक हनुमान मंदिर हैं, जहां हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। इनमें प्राचीन हनुमान मंदिरों में बावली वाले हनुमान, मच्छी तालाब गुढ़ियारी, तात्यापारा, दूधाधारी मठ के मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा रेलवे स्टेशन परिसर स्थित सर्वधर्म सद्भावना हनुमान मंदिर प्रदेश का सबसे ऊंचा हनुमान मंदिर है।
इस वर्ष हनुमान जन्मोत्सव पर होने वाली जयपुर की आतिशबाजी आकर्षण का केंद्र होगी। जन्मोत्सव पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सहित मंत्रिमंडल के अनेक सदस्य शामिल होंगे।
रेलवे स्टेशन परिसर स्थित सर्वधर्म संकट मोचन मंदिर समिति के अध्यक्ष राजकुमार राठी एवं संरक्षक कमलेश तिवारी के अनुसार, यहां जन्मोत्सव के अवसर पर महाआरती के पश्चात महाप्रसादी का वितरण होगा। इस दौरान मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सहित कई बड़े नेता और अधिकारी भी मौजूद रहेंगे।
सर्वधर्म संकट मोचन हनुमान मंदिर में स्टेशन के कुलियों ने हनुमान प्रतिमा की स्थापना की थी। इसके पश्चात जनसहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर में सभी धर्मों के प्रतीक चिह्न हैं। स्टेशन में आने वाले यात्रियों के अलावा प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं।
वीआईपी रोड पर अग्रसेन धाम परिसर में राजस्थान के सालासर हनुमान का प्रतिरूप प्रतिष्ठापित है। मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश गोयल, कार्यक्रम प्रभारी ईश्वर प्रसाद अग्रवाल, प्रचार प्रसार प्रभारी कर्तव्य अग्रवाल ने बताया कि हनुमान प्रतिमा का 51 किलो दूध से दुग्धाभिषेक, 101 सवामणी भोग, 51 किलो का एक बड़ा लड्डू भोग, 501 बूंदी लड्डू का भोग लगेगा। कोलकाता के भजन गायक जयशंकर चौधरी भजों की प्रस्तुति देंगे। मंदिर को अंगूर, अनार, केला, मोसंबी, संतरा, तरबूज ,चीकू, नारियर के फलों से सजाया गया है।
वीआईपी रोड स्थित श्रीराम मंदिर परिसर में माता अंजनी की गोद में बैठे बाल रूप में हनुमान की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है। यह प्रदेश का एकमात्र मंदिर है जहां माता अंजनी की गोद में बैठे हनुमान की सुंदर प्रतिमा है। संगमरमर से निर्मित प्रतिमा का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु पहले श्रीराम-सीता का दर्शन करते हैं। फिर माता अंजनी और बाल हनुमान के दर्शन करते हैं।
तात्यापारा चौक पर 1,100 वर्ष पुरानी हनुमान प्रतिमा स्थापित है। महाराष्ट्रीयन समाज के नेतृत्व में मंदिर का संचालन किया जा रहा है। पहले वर्षों तक प्रतिमा पर सिंदूर, चोला चढ़ाया जाता रहा था। कुछ वर्ष पूर्व प्रतिमा से सिंदूर का चोला अपने आप उतर गया। इसके बाद प्रतिमा हल्के भूरे रंग की दिखाई दी।
प्रतिमा का वास्तविक रूप सामने आने के बाद उसी रूप में पूजा होने लगी है। अब प्रतिमा पर सिंदूर, चमेली के तेल का लेपन नहीं किया जाता। 1,100 वर्ष प्राचीन प्रतिमा को कालांतर में मराठा भोसला राजाओं ने स्थापित करवाया। सन् 1800 में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की स्थापना करने के लिए तात्याटोपे के वंशजों ने सहयोग किया था। बाद में यह इलाका तात्यापारा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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