नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। होली का पर्व 40 दिन पूर्व वसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। ठाकुरजी (श्रीकृष्ण) कमर में पीतांबरी बांधकर रंगों से होली खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं।
होली का हुड़दंग होलाष्टक लगने यानी डांडा गढ़ने के साथ शुरू हो जाता है। इस वर्ष होलिकाष्टक (होलाष्टक) 7 मार्च से शुरू होंगे और इसी दिन शुभ कार्यों पर प्रतिबंध लग जाएगा।
कई स्थानों पर होलाष्टक के दिन ही होली का डांडा गाढ़ा जाता है। होली का डंडा भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की स्मृति का प्रतीक है। डांडा के आसपास लकड़ी और कंडे लगाए जाते हैं और फिर होलिका दहन के दिन इसे अग्नि दी जाती है।
हर शहर के प्रमुख चौराहों व गली, मोहल्लों में डांडा गाढ़ा जाता है। उसी दिन से होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक बदलाव आता है, जिससे उसकी निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
इस दौरान कई बार गलत निर्णय भी हो जाते हैं। इस कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए जनमानस को इन आठ दिनों में महत्वपूर्ण कार्यों का निर्णय लेने से बचना चाहिए और यदि जरूरी हो तो बहुत अधिक सतर्क रहकर निर्णय लेने चाहिए।