Holika Dahan 2025: ‘माता लक्ष्मी का वास होता है, रोग-दोष से मुक्ति मिलती है’... ज्योषाचार्यों ने बताया क्यों लकड़ी नहीं, कंडों से करें होलिका दहन
समय के साथ हुए बदलावों में होलिका दहन में लकड़ियों का इस्तेमाल होने लगा है, हालांकि ज्योतिषाचार्य इसे सही नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि यह वैज्ञानिक रूप से भी गलत और पर्यावरण के लिए हानिकारक तो है ही। ज्योतिषाचार्यों का साफ कहना है कि अनादिकाल से गाय के गोबर से बनी गुलरी से होलिका दहन किया जाता था।
Publish Date: Mon, 10 Mar 2025 07:33:26 AM (IST)
Updated Date: Tue, 11 Mar 2025 12:54:12 AM (IST)
धुलेंडी से एक दिन पहले होलिका दहन होता है। (फाइल फोटो)HighLights
- गाय के गोबर से होलिका दहन ही शास्त्र सम्मत
- पेड़ काटकर होलिका दहन अनुचित नहीं, अधर्म भी
- गाय का गोबर को ही पंचद्रव्य बताया गया है
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। होलिका दहन 13 मार्च गुरुवार को किया जाएगा। होली गाय के गोबर के उपलो (कंडो) से जलाना शास्त्र सम्मत है कि नहीं? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए ग्वालियर के प्रमुख ज्योतिष विद्वानों से नईदुनिया ने चर्चा की।
इनका कहना है कि हमारे शास्त्रों में प्रकृति के संरक्षण का महत्व बताया गया है। द्वापर में तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा ब्रजवासियों से कराकर पर्यावरण के संरक्षण का संदेश दिया था।
ज्योतिष विद्वानों का मत है कि पेड़ काटकर होलिका दहन अनुचित नहीं, अधर्म है। शास्त्रों में हवन-पूजन का कार्य गाय के गोबर बने उपलो से करने का विधान हैं। इससे साकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
अनादिकाल से होलिका दहन गाय के गोबर के निर्मित उपलो व गुलरियों से किया जाता था। वो तो हमारे गांव और चौक चौबारे के बड़ी होली की प्रतिद्वंद्विता के कारण होलिका दहन में लकड़ियों का उपयोग शुरू हो गया है। जो कि अनुचित है।
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गोबर के उपलो से ही होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत
- ज्योतिषविद डॉ. दीपक गोस्वामी ने कहा कि सनातन धर्म में गाय के गोबर को पवित्र माना गया है। हर धार्मिक कार्य पूजा स्थल को शुद्ध करने से लेकर हवन पूजन गाय के गोबर का उपयोग किया जाता है। गाय का गोबर को ही पंचद्रव्य कहा जाता है।
- होलिका दहन सदियों से गाय के गोबर से बने उपलो व गुलेरियों से किया जाता है। सात दिन पहले होलकाष्टक लगने से परिवार की माता-बहनें गाय का गोबर इकट्ठा कर होलिका दहन के लिए गुलरी बनाना शुरू कर देती थीं।
सात दिन में गुलरी सूख जाती थी और होली जलाने के लिए छोटी बड़ी माला बनाई जाती थी। गाय के गोबर के उपले (कंडो) से ही होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत है।
पं. संजय वैदिक ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गोबर के उपलो से होलिका दहन करने से न केवल पर्यावरण की दृष्टि उचित है और शास्त्रों में इसी का विधान बताया गया है।
गाय के गोबर से निर्मित्त उपलो से हवन-पूजन वातावरण को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। इसलिए होलिका दहन भी लकड़ियों की बजाये कंडो से किया जाना चाहिए।
जब श्रीराम चौदह वर्ष वनवास गये, उस समय भरत जी ने भी संकल्प लिया था कि जौ खाने के बाद गाय के गोबर से जो सबूत जौ निकलते थे, उसे धोकर उसी के आटे का सेवन करते थे। गाय का पंचद्रव्य भी शुद्ध माना गया है।
पर्यावरण की रक्षा और पेड़ बचाने के लिए कंडो से होलिका दहन करें। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होंगे और सुख-समृद्धि व उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करेंगे। ![naidunia_image]()
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वातावरण के बैक्टीरिया का नाश होता है
पं. संजय जी वैदिक ज्योतिषाचार्य के अनुसार, मान्यता है कि गाय के पृष्ठ भाग यानी पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर इसी स्थान से मिलता है। होलिका दहन में इसके इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं। इसी वजह से पूजा-पाठ में भी गोबर के उपलों का इस्तेमाल होता है।
किसी भी स्थान पर गोबर के उपले जलाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और होलिका की अग्नि में भी जब इन्हें जलाते हैं तो रोग -दोष मुक्त होते हैं और आर्थिक स्थिति ठीक हो सकती है।
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उपले जलाने के बाद उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है और समस्त बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते है।यहाँ तक की यदि कोई लगातार बीमारी से परेशान है तो होली के जले हुए उपलों की राख मरीज के सोने वाले स्थान पर छिड़कने से बीमारी से लाभ मिलता है।