धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्र में हर दिन माता दुर्गा की विशेष उपासना का महत्व होता है, लेकिन अष्टमी और नवमी तिथि का स्थान इसमें सबसे पवित्र माना गया है। इन दिनों कन्या पूजन और कंजक भोज का आयोजन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि छोटी-छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप मानकर जब उन्हें सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता है, उनके चरण धोए जाते हैं और भोजन कराया जाता है, तो यह नौ दिनों के उपवास और साधना को पूर्णता प्रदान करता है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि कन्या पूजन के बिना नवरात्र का व्रत अधूरा रहता है।
कन्या पूजन में परोसा जाने वाला भोजन केवल साधारण भोजन नहीं होता, बल्कि इसे देवी का भोग मानकर बनाया जाता है। इसमें सात्त्विकता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
सूजी का हलवा- यह कन्या पूजन का मुख्य प्रसाद होता है। शुद्ध देसी घी में बना हलवा पहले माता रानी को अर्पित किया जाता है और फिर कन्याओं को परोसा जाता है।
पूरी- ताजी और फूली हुई पूरियां प्रसाद का अभिन्न हिस्सा हैं। कई जगहों पर मीठी पूरी बनाने की भी परंपरा होती है।
काले चने- काले चने का पकवान कन्या भोज में विशेष स्थान रखता है। इन्हें बिना प्याज-लहसुन के पकाना अनिवार्य माना गया है।
खीर- कुछ परिवार हलवे की जगह या उसके साथ-साथ चावल की खीर भी बनाते हैं। यह भी माता को प्रिय व्यंजन माना जाता है।
ताजे फल और मिठाई- भोजन के बाद कन्याओं को मौसमी फल जैसे केला, सेब अथवा अन्य फल और मिठाई दी जाती है। इसे भोजन की पूर्णता माना जाता है।
कन्या पूजन का भोजन सात्त्विक और पवित्र होना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तु का प्रयोग वर्जित है। इसलिए प्याज, लहसुन, मांसाहार, अंडा, बासी खाना या बाजार की तैलीय और खट्टी चीजें भोग में शामिल नहीं की जातीं। ऐसा करने से माना जाता है कि माता रानी अप्रसन्न हो सकती हैं।
कन्या पूजन केवल भोजन कराने तक सीमित नहीं है। जब कन्याएं भोजन कर लें, तो उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करना भी आवश्यक है। घर से विदा करने से पहले उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद देवी दुर्गा का ध्यान करते हुए कन्याओं को उपहार, फल या दक्षिणा देकर विदा करना शुभ माना जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कन्याओं को विदा करने के तुरंत बाद घर की सफाई करने से बचना चाहिए।
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नवरात्र का कन्या पूजन केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि समाज में बेटियों के महत्व और उनके सम्मान का भी प्रतीक है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा प्रत्येक कन्या में विद्यमान हैं, और उनका सम्मान करना ही सच्चे अर्थों में देवी उपासना है।