
योगेंद्र शर्मा। धर्मशास्त्रों में दान, पुण्य, तपस्या और कर्म का बड़ा महत्व बताया गया है। विभिन्न पर्वों और व्रत त्यौहारों के अवसर पर किए गए दान का अक्षय फल मानव को प्राप्त होता है। इन्ही मनोकामना को लेकर विशेष तिथियों में पौराणिक धर्मस्थलों और पवित्र सरोवरों, नदियों और जलाशयों पर श्रद्धालुओं का जमघट लगता है।
पूजा-अर्चना के उपादानों में ऐसा ही एक कर्म दीपदान बताया गया है। दीपदान के माध्यम से लोग अपनी मनोकामनाओं को ईश्वर तक पहुंचाते हैं और अपनी जिंदगी को रोशन करते हैं। दीपदान किसी भी विपत्ति के निवारणार्थ श्रेष्ठ उपाय है।

तिथि के अनुसार दीपदान का महत्व
वैसे तो साल में कभी भी दीपदान किया जा सकता है लेकिन विशेष तिथि, दिवस, मास और नक्षत्र पर किया गया दीपदान विशेष फलदायी होता है। दीपदान के लिए धर्मशास्त्रों के अनुसार बसन्त, हेमन्त, शिशिर, वर्षा और शरद ऋतु उत्तम मानी गई है। वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन मास श्रेष्ठ है। पक्षों में शुक्ल पक्ष दीपदान के लिए अधिक उत्तम होता है।
तिथियों में प्रथमा, द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, द्वादशी, त्रयोदशी व पूर्णिमा तिथि दीपदान के लिए उत्तम मानी गई है। रोहिणी, आर्दा, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा और श्रवण सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं। योग में सौभाग्य, शोभन, प्रीति, सुकर्म, वृद्धि, हर्षण, व्यतिपात और वैधृत योगों में दीपदान करना शुभ रहता है। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, संक्रान्ति, कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवरात्र एवं महापर्वो पर दीपदान करना विशेष फलदायक रहता है।

कष्टों के निवारण में दीपदान का महत्व
शास्त्रों के अनुसार भूत –प्रेत बाधा से निवारण के लिए एक पाव तेल का दीपक 21 दिन तक निरन्तर जलाने से बाहरी बाधा का नाश हो जाता है। शत्रु शमन के लिए-75 बत्ती वाली दीपक जलाने से शत्रु का नाश हो जाता है। यदि किसी को राजभय है तो सवा पाव तेल का दीपक 40 दिन जलाने से राज भय का नाश हो जाता है।
पुत्र प्राप्ति के लिए उन्नीस दिन सवा पाव तेल का दीपक जलाने से सन्तान की प्राप्ति होती है। ग्रह पीड़ा निवारण करने हेतु चौसठ तोला तेल से दीपदान करने से किसी भी प्रकार की ग्रह पीड़ा समाप्त हो जाती है। असाध्य रोग से छुटकार पाने के लिए अस्सी तोला तेल का दीपक 20 दिन जलाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।

विभिन्न प्रकार के घी और तेल का दीपदान
गाय के दूध का घी सर्वसिद्धिकारक होता है। भैंस के दूध का घी मारण क्रिया के प्रयोग में लाया जाता है। बकरी के दूध का घी उच्चाटन क्रिया में प्रयोग होता है। उॅटनी के दूध का घी शत्रुबाधा में प्रयोग होता है। भेड़ के दूध का घी शान्तिकर्म में प्रयोग किया जाता है। तिल का तेल सर्वार्थसिद्धि के लिए प्रयोग होता है। सरसों का तेल मारण क्रिया में उपयोग किया जाता है।

दीपदान में बत्तियों का महत्व
दीपदान में बत्तियों का भी काफी महत्व है। विभिन्न मनोकामनाओं के लिए विभिन्न रंगों की बत्तियों का प्रयोग किया जाता है। वशीकरण के लिए सफेद, शत्रुनाश के लिए पीली बत्तियों को श्रेष्ठ माना जाता है। स्तम्भन में काली बत्ती, उच्चाटन में केसरिया और वशीकरण के लिए श्वेत बत्तियों का उपयोग किया जाता है।
दीपक में दिशा का महत्व
दीपक को पू्र्वमुखी रखकर प्रज्वलित करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। पश्चिम दिशा में दीपक जलाने से स्तम्भन, उच्चाटन जैसे कार्यों में सफलता मिलती है। लक्ष्मीप्राप्ति के लिए उत्तरमुखी दीपक को श्रेष्ठ माना जाता है तो मारण कार्य में दक्षिमामुखी दीपक से बेहतर फल प्राप्त होता है।