धर्म डेस्क: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के बाद ब्रजमंडल में नंदोत्सव (Nandotsava 2025) की विशेष धूम होती है। मथुरा के गोकुल में रविवार को नंदभवन नंद किला मंदिर से ठाकुरजी का डोला नंद चौक पहुंचेगा। यहां रास चबूतरे पर मिठाई, उपहार और लाला की छीछी लुटाई जाएगी। जन्माष्टमी पर बांकेबिहारी नगरी वृंदावन और राधारमण मंदिर में भक्तों ने उल्लासपूर्वक भगवान का महाभिषेक किया। नंदोत्सव श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पारंपरिक पर्व है।
नंदोत्सव वह उत्सव है जो श्रीकृष्ण के जन्म (जन्माष्टमी) के अगले दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, तो नंद बाबा और यशोदा माता ने गोकुल में उनके जन्म की खुशी में उत्सव आयोजित किया। इस दिन लोग भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और उत्सव में नृत्य, गीत और दही-माखन से संबंधित आयोजन किए जाते हैं। यह पर्व भक्ति, आनंद और सामुदायिक उत्साह का प्रतीक है।
ब्रजमंडल में जन्माष्टमी का उल्लास पहले से ही छाया हुआ है। वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल राधारमण मंदिर में जन्माष्टमी का विशेष आयोजन किया गया। यहां वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच ठाकुर राधारमणलाल का पंचामृत से महाभिषेक किया गया। इस अवसर पर 2100 किलो दूध, दही, घी, शहद, शर्करा, इत्र, यमुनाजल और जड़ी-बूटियों का प्रयोग हुआ। महाभिषेक के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
जन्माष्टमी और नंदोत्सव दोनों पर्वों का ब्रज संस्कृति में विशेष महत्व है। नंदोत्सव उस हर्ष का प्रतीक है, जब नंद बाबा और माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में पूरे गोकुलवासियों के साथ मिलकर उत्सव मनाया था। यह परंपरा आज भी जीवित है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं।
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