
Rukmini Ashtami 2019: पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मणी अष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग में देवी रुक्मणी का जन्म हुआ था। पौराणिक शास्त्रों में रुकमणी को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है। इस साल रुकमणी अष्टमी 19 दिसंबर गुरुवार को मनाई जाएगी।
ऐसे करें देवी रुकमणी की पूजा
सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। एक पात्र में श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी की प्रतिमा को रखकर दक्षिणावर्ती शंख में स्वच्छ जल भरकर दोनों प्रतिमाओं का जलाभिषेक करें। साथ ही केसर मिश्रित दूध से दुग्धाभिषेक करें। दोनों देवी-देवताओं के चरण स्वच्छ जल से धोएं। पैर धोने के जल में फूलों की पंखुड़ियां डालें। प्रतिमा का स्नान करवाते वक्त श्रीकृष्ण शरणम मम: या कृं कृष्णाय नम: का जाप करते रहें।
सबसे पहले श्रीगणेश को विराजित कर उनका पूजन करें। एक पाट पर पीला, लाल या नारंगी वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी की प्रतिमा को स्थापित करें। दोनों की कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, चंदन, सुगंधित फूल, इत्र आदि से पूजा करें। भगवान श्रीकृष्ण को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र समर्पित करें।
श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी को पंचामृत, तुलसीदल, पंचमेवा, ऋतुफल और मिष्ठान्न का भोग लगाए। दोनों को खीर का भोग विशेष रूप से लगाएं और भोग की सभी सामग्री में तुलसी दल डालें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और आरती उतारें। संध्याकाल में फिर से इसी विधि-विधान से श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी का पूजन करें। व्रत किया हो तो फलाहार करें। अगले दिन नवमी तिथि को ब्राह्मणभोज का आयोजन कर व्रत का पारण करें।
श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी देवी रुकमणी
देवी रुकमणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी। रुकमणी के भाई रुकमी उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन रुकमणी दिल से भगवान श्रीकृष्ण को अपना सब कुछ मान चुकी थी। देवी रुकमणी का जिस दिन शिशुपाल से विवाह होने वाला था वह उस दिन अपनी सखियों के साथ मंदिर गई थी। जब वह पूजा करके बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्रीकृष्ण ने उनको रथ में बिठा लिया और द्वारका की ओर प्रस्थान कर गए। श्रीकृष्ण और रुकमणी के पुत्र का नाम प्रद्युम्न था, जो कामदेव के अवतार थे।