
मल्टीमीडिया डेस्क। देवी की आराधना किसी भी स्वरूप में की जाए, वह हमेशा अपने भक्तों को शुभाशीष देती है। भक्त भक्ति भाव से मां की आराधना करते हैं और माता उनकी झोली खुशियों से भर देती है। माता की पूजा वैसे तो पूरे साल फलदायी है, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर देवी की आराधना से विशेष फलदायी होती है। नवरात्रि में माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और इन नौ दिनों का फल भी भक्तों को अलग -अलग प्राप्त होता है। माता की आराधना सदैव फलदायी होती है, किंतु नवरात्रि के अवसर पर माता की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और मानव के सभी कष्टों का हरण होता है।
शैलपुत्री
माता का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है। मान्यता है कि 'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी महादेव से हुआ था। पूर्वजन्म की तरह इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। नवरात्रि के दूसरे दिन दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन खुशहाल हो सके और सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा को आसानी से पार कर सकें।
चंद्रघण्टा
चंद्रघण्टा माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघण्टा का अर्थ व्यापक होता है। चंद्र मतलब चंद्रमा और घण्टा का मतलब घण्टा के समान। उनके मस्तक पर चमकते हुए चंद्रमा के कारण उनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इन्हें चंद्रखंडा नाम से भी जाना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को साहस और वीरता प्रदान करता है और उनके दुःखों का निवारण करता है। मान्यता है कि देवी चंद्रघण्टा माता पार्वती की ही रौद्र रूप हैं।
कूष्माण्डा
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माण्डा की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। माँ कूष्माण्डा की आराधना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। कूष्माण्डा देवी की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा थोड़ी सी भक्ति से प्रसन्न हो जाती हैं।
स्कन्दमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन स्कन्दमाता की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले भक्तों की सभी लालसाओं का अंत हो जाता है। स्कंदमाता की आराधना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं और मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है।
कात्यायनी
माता कात्यायनी का वर्णन देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है। नवरात्रि के छठे दिन भक्त का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। माँ कात्यायनी की उपासना से मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
कालरात्रि
नवरात्रि के सातवे दिन माता कालरात्रि की आराधना की जाती है। माता कालरात्रि की उपासना से सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। साथ ही समस्त पापों और विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
महागौरी
नवरात्रि के आठवे दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन माता महागौरी की उपासना से इ भक्तों के पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप,संताप, दुःख, दारिद्रय उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
सिद्धिदात्री
नवरात्रि के नवे दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता सिद्धिदात्री की आराधना से भक्त को सभी तरह की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। मार्कण्डेय पुराण में सिद्धियों की संख्या अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्वये कुल आठ बताई गई हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।