राजेश वर्मा, नईदुनिया उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर की वाद्य वादन परंपरा में बैंड के रूप में नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। बीते 300 साल से मंदिर में सुबह व शाम को शहनाई बजाई जाती है। लेकिन अब पांच आरती में बैंड भी बजाया जाएगा। मंदिर समिति अपना बैंड बनाने जा रही है। इसके लिए वाद्य वादकों का ट्रायल चल रहा है। इसके बाद आउट सोर्स के जरिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। दानदाताओं के सहयोग से वाद्य यंत्र भी खरीदे जाएंगे।
महाकाल मंदिर में प्रतिदिन भस्म आरती संपन्न होने के बाद सुबह 6 बजे तथा शाम को 7 बजे शहनाई वादन होता है। सिंधिया स्टेट के समय से यह परंपरा चली आ रही है। 300 साल से शहनाई वादक वंश परंपरा के अनुसार आज भी निर्धारित समय पर शहनाई बजाने आते हैं। इसके अलावा श्रावण-भद्रपद मास में निकलने वाली भगवान महाकाल की सवारी में पुलिस बैंड अपनी सेवा देता है। मंदिर की परंपरा अनुसार पुलिस बैंड हमेशा पालकी के आगे चलता है।
वाद्य वादन की यह परंपरा अब समृद्ध होती नजर आ रही है। मंदिर समिति अब अपना स्वयं का बैंड तैयार कर रही है। यह बैंड श्रावण-भादौ मास की सवारी के अलावा प्रतिदिन होने वाली भगवान महाकाल की पांच आरती में भी बैंड बजाया जाएगा। मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिक ने बताया महाकाल मंदिर में बैंड निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वादकों की भर्ती के लिए ट्रायल लिया जा रहा है।
पं.महेश पुजारी ने बताया भगवान शिव संगीत व नृत्य के देवता हैं। इसलिए उन्हें नटराज व कलाधर भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में शिव को वाद्यों का रचयिता भी कहा गया है। महाकाल मंदिर की पूजन परंपरा में इसी लिए वाद्य वादन का महत्व है। श्रावण महोत्सव, उमा सांझी उत्सव में गीत,संगीत व नृत्य की कला त्रिवेणी से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजि किए जाते हैं।
महाकाल मंदिर की पूजन परंपरा में महाशिवरात्रि पर शिव विवाह के अवसर पर मंगल वाद्य के रूप में ढोल बजाए जाते हैं। परंपरा अनुसार ढोल वादक अन्य विशेष अवसर पर भी ढोल बजाने मंदिर आते हैं।
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