Akshaya Tritiya क्यों मनाई जाती है, हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखे हैं ये 7 कारण
Akshaya Tritiya 2022: यहां जानिए अक्षय तृतीया का परशुराम, मां गंगा और मां अन्नपूर्णा से क्या था संबंध। युधिष्ठिर को अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था।
By Arvind Dubey
Edited By: Arvind Dubey
Publish Date: Tue, 19 Apr 2022 11:24:03 AM (IST)
Updated Date: Wed, 20 Apr 2022 12:00:05 PM (IST)

Akshaya Tritiya 2022: हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीय (Akshaya Tritiya) का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 3 मई, मंगलवार को पड़ कर रही है। अक्षय तृतीया के त्योहार को आखा तीज भी कहा जाता है। इस दिन सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बिना किसी मुहूर्त किए जा सकते हैं।नई पीढ़ी के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर Akshaya Tritiya का त्योहार क्यों मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में इसके अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग कारण बताए गए हैं।
Akshaya Tritiya 2022: इसलिए मनाया जाता है अक्षय तृतीया का त्योहार
- भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं। परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुकादेवी से हुआ था। इसी वजह से अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। साथ ही परशुरामजी की भी पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से विदा होकर धरती पर आई थीं। गंगा को धरती पर उतारने के लिए राजा भगीरथ ने हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। इस दिन विशेष रूप से पवित्र गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी दुराचार नष्ट हो जाते हैं।
इस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। गरीबों को खाना खिलाया जाता है। मां अन्नपूर्णा भोजन के स्वाद का आशीर्वाद देती हैं और महिलाएं अपनी रसोई को पूरा करने के लिए उनकी पूजा करती हैं।
अक्षय तृतीया के दिन महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत लिखना शुरू किया था। इसे पांचवां वेद माना जाता है। सशक्त श्रीमद्भागवत गीता भी इसमें शामिल है। अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
बंगाल में, व्यापारी सर्वशक्तिमान भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी की पूजा करके अपना खाता शुरू करते हैं। इसलिए इस दिन को हलखता के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान शंकरजी ने इस दिन भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी को आदर्श बनाने का सुझाव दिया था, जिसके बाद अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और यह रिवाज आज भी जारी है।
अक्षय तृतीया के दिन पांडव के पुत्र युधिष्ठिर को भी अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था। इसकी खास बात यह है कि इसमें हमेशा भरपूर मात्रा में भोजन होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था। तो कुछ लोगों के अनुसार नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव जी के निमित्त वे जौ या गेहूं, खीरा और भीगी हुई चने की दाल का सत्तू अर्पण करते हैं।