
डिजिटल डेस्क। कभी सूखी रोटियां खाईं, कभी आंसुओं से हिम्मत जुटाई लेकिन सपनों को कभी टूटने नहीं दिया। यह कहानी है हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव पारसा की मां-बेटी की, जिन्होंने संघर्ष के बीच इतिहास रच दिया। जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप अपने नाम किया, तो इस जीत के पीछे शिमला की बेटी रेणुका सिंह ठाकुर और उनकी मां सुनीता ठाकुर का अटूट समर्पण और जज्बा दिखाई दिया।
शिमला जिले के रोहड़ू उपमंडल के पारसा गांव की रेणुका ने देश को गौरवान्वित किया। उनकी सफलता के पीछे मां सुनीता ठाकुर की वर्षों की मेहनत, त्याग और संघर्ष की कहानी छिपी है। बेटी की जीत पर जब दैनिक जागरण ने सुनीता ठाकुर से बात की, तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
पिता का सपना, मां ने किया साकार
रेणुका जब सिर्फ तीन साल की थी, तभी उनके पिता केहर सिंह ठाकुर का निधन हो गया था। पिता का सपना था कि बेटी क्रिकेटर बने और मां ने उसी सपने को अपनी जिम्मेदारी बना लिया। उन्हें जल शक्ति विभाग में दैनिक वेतनभोगी की नौकरी मिली, जिससे महीने में केवल 1500 रुपये कमाई होती थी।
प्रशिक्षण का खर्च बहुत अधिक था सिर्फ जूतों का ही खर्च 15 हजार रुपये था। लेकिन मां ने हार नहीं मानी, उधार लेकर भी बेटी की ट्रेनिंग और जरूरतें पूरी कीं।
कपड़े की गेंद से शुरू हुई कहानी
बचपन में रेणुका कपड़े की गेंद और लकड़ी के बैट से अपने भाई विनोद और चचेरे भाइयों के साथ क्रिकेट खेलती थी। उनके चाचा भूपेंद्र ठाकुर ने सबसे पहले उनकी प्रतिभा को पहचाना और जब वह 13 साल की हुईं, तो उन्हें हिमाचल प्रदेश क्रिकेट अकादमी (HPCA) धर्मशाला लेकर गए।
आज वही रेणुका भारतीय महिला क्रिकेट टीम की प्रमुख गेंदबाज हैं। रविवार को हुए वर्ल्ड कप फाइनल में उन्होंने शानदार प्रदर्शन कर भारत की ऐतिहासिक जीत में अहम भूमिका निभाई।
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