एजेंसी, आजमगढ़। पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र बनारस घराने के महान स्तंभ रहे। वह आजमगढ़ के अपने पैतृक गांव हरिहरपुर के संगीत की परंपरा को विश्व पटल तक ले गए। शास्त्रीय संगीत की परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में उनका योगदान रहा। हरिहरपुर से उनका लगाव जीवनभर कायम रहा।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1916 को हरिहरपुर गांव में हुआ था। पिता पंडित बद्रीनाथ मिश्र से उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ली। उसके बाद में किराना घराने के उस्ताद अब्दुल घनी खां से खयाल गायकी सीखी। ठुमरी, चैती, कजरी और पूर्वांग शैली की गायकी में उनका कोई सानी नहीं था। उनके गांव हरिहरपुर में लगभग 400 वर्ष पहले संगीत साधना की परंपरा शुरू हुई थी, जो आज भी जारी है।
पंडित जी अपने पैतृक गांव जब भी आते, तब संगीत प्रेमियों के बीच चौपाल जमती। खासकर युवा कलाकारों से वह गहन संवाद करते थे। उनकी प्रतिभा को निखारने में सहयोग करते। बच्चों से सरगम पूछना, गलतियों को सुधारना और लगातार रियाज की प्रेरणा देना उनकी खासियत थी। यही कारण था कि हरिहरपुर के युवा उनके आने का बेसब्री से इंतजार करते।
पंडित छन्नूलाल मिश्र अंतिम बार करीब चार वर्ष पहले पत्नी, पुत्र पंडित राजकुमार मिश्र और पुत्री नम्रता के साथ हरिहरपुर पहुंचे थे। कुलदेवी की पूजा के बाद उन्होंने गांव के युवाओं के साथ समय बिताया था। उन्हें संगीत साधना को ऊंचाई पर ले जाने के लिए प्रेरित किया। उनकी मौजूदगी से गांव का माहौल संगीत मय हो उठता था।
2011 में हरिहरपुर कजरी महोत्सव में शामिल होकर पंडित जी ने अपने शास्त्रीय संगीत का ऐसा प्रदर्शन किया कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए। उनका मानना था कि हरिहरपुर का संगीत अद्वितीय है, जिसकी पहचान देश-विदेश में कायम रहनी चाहिए।
हरिहरपुर संगीत घराना संस्था के प्रमुख अजय कुमार मिश्र ने कहा कि पंडित जी का गांव और युवाओं से प्रेम अविस्मरणीय है। उनके आदर्श और प्रेरणा से कई युवा संगीत में नया मुकाम हासिल कर चुके हैं। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि गांव की नई पीढ़ी संगीत साधना को जीवित रखे और आगे बढ़ाए।