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डिजिटल डेस्क। पड़ोसी देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे लगातार अत्याचार और उनकी घटती आबादी के बीच, सरकारी उदासीनता को उजागर करने वाली एक गंभीर रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में मौजूद 1,817 हिंदू मंदिरों और सिख गुरुद्वारों में से केवल 37 ही चालू हैं।
अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए ये आंकड़े एक गंभीर वास्तविकता को दर्शाते हैं। खराब सरकारी रखरखाव और हिंदू तथा सिख समुदायों की निरंतर घटती आबादी के कारण, सदियों पुराने इन पूजा स्थलों की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है।
प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक "डॉन" की रिपोर्ट के अनुसार, संसदीय समिति के पहले सत्र के दौरान संसद सदस्य दानेश कुमार ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संवैधानिक वादों को मूर्त रूप देने का संकल्प दोहराया। उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यक "संवैधानिक गारंटियों के व्यावहारिक कार्यान्वयन" के हकदार हैं और न्याय तथा समानता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल नीतिगत सुधारों की मांग की।
सत्र के दौरान, पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के वरिष्ठ अधिकारी और पूर्व मंत्री डॉ. रमेश कुमार वंकवानी ने इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि ईटीपीबी अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले मंदिरों और गुरुद्वारों की देखभाल करने में विफल रहा है। उन्होंने मांग की कि ईटीपीबी का नेतृत्व किसी गैर-मुस्लिम को सौंपा जाए, तभी उपेक्षित धार्मिक संपत्तियों का जीर्णोद्धार ईमानदारी से किया जा सकेगा।
समिति ने इन धरोहर स्थलों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की सिफारिश की, क्योंकि ये न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि पाकिस्तान के बहुसांस्कृतिक अतीत का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
संसद सदस्य केसू मल खेल दास ने कहा कि विभाजन (1947) के बाद अधिकांश पूजा स्थल वीरान हो गए हैं। उन्होंने मांग की कि सरकार को इन संरचनाओं को सांस्कृतिक स्थलों के रूप में संरक्षित करना चाहिए और इन्हें देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए खोलना चाहिए।
खबर - एएनआई के आधार पर
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