
डिजिटल डेस्क। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में एक बार फिर विरोध की लहर उठी है। एक महीने के भीतर यह दूसरा बड़ा प्रदर्शन है, जिसे इस बार छात्रों और जेनरेशन जी (Gen Z) के युवाओं ने नेतृत्व दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह आंदोलन शुरुआत में सिर्फ यूनिवर्सिटी की फीस और गलत परीक्षा परिणामों के खिलाफ था, लेकिन अब यह पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार और सेना के खिलाफ व्यापक विद्रोह का रूप ले चुका है।
यह विरोध सबसे पहले इस महीने की शुरुआत में आजाद जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय (UAJK), मुजफ्फराबाद से शुरू हुआ था, जहां छात्रों ने फीस बढ़ोतरी और परीक्षा परिणामों में गड़बड़ियों को लेकर प्रदर्शन किया। पूरा विवाद एक नए डिजिटल मूल्यांकन सिस्टम से जुड़ा बताया जा रहा है, जिसे हाल ही में मैट्रिक और इंटरमीडिएट स्तर पर लागू किया गया था।
مظفرآباد میں پرامن طلباء پر تشدد کے بعد طلباء احتجاج کررہے ہیں اور پاکستانی مقبوضہ کشمیر میں اب یہ حالات ھوگئے ہیں کہ اگر طلباء یونیورسٹی میں فیسوں بےتحاشہ اضافے پر بھی احتجاج کریں تو ریاستی کُتے ان پر چھوڑ دیئے جاتے ہیں
#StandWithAJKstudents pic.twitter.com/W4hvsnEAbz
— Shafiq Ahmad Adv (@ShafiqAhmadAdv3) November 4, 2025
क्या है पूरा मामला
IANS की रिपोर्ट के अनुसार, इंटरमीडिएट के पहले वर्ष के रिजल्ट लगभग छह महीने की देरी से जारी किए गए, जिससे हजारों छात्रों में नाराज़गी फैल गई। कई छात्रों ने आरोप लगाया कि उन्हें बिना कारण बहुत कम अंक दिए गए, जबकि कुछ को ऐसे विषयों में पास दिखाया गया जिनकी परीक्षा उन्होंने दी ही नहीं थी। धीरे-धीरे यह गुस्सा केवल रिजल्ट और फीस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह पाकिस्तान की नीतियों, प्रशासनिक नाकामी और सेना के हस्तक्षेप के खिलाफ एक बड़े आंदोलन में बदल गया है।
युवाओं के इस उभार ने पाकिस्तान की सरकार और सेना, दोनों की नींव हिला दी है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) में भड़के इस आंदोलन के बाद, क्या पाकिस्तान में पहले की तरह एक और बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन देखने को मिलेंगे या हालात और बिगड़ेंगे। चलिए आपको पाकिस्तान में हुए कुछ बड़े विरोध प्रदर्शन के बारे में बताते हैं।
कब-कब पाकिस्तान में हो चुके हैं बड़े विरोध प्रदर्शन
अब बात करते हैं कि पाकिस्तान में कब-कब बड़े विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। यह एक ऐसा मुल्क है, जहां समय-समय पर बड़े प्रदर्शन होते रहते हैं। फिर चाहे वह इमरान खान के जेल जाने के बाद बवाल हो, या फिर इलेक्शन के बाद का बवाल हो यह मुल्क समय-समय पर बड़े विरोध प्रदर्शन को देख चुका है। चलिए विस्तार से जानते हैं।
कराची दंगा
भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्क एक साथ आजाद हुए थे। दोनों देशों से एक बड़ी आबादी इधर से उधर आई गई थी। साल 1948 में पाकिस्तान के कराची में एक बड़ा दंगा हुआ था। इसमें हिंदू और सिखों को निशाना बनाया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सिंधी दैनिक 'अल-वहीद' ने AP के हवाले से रिपोर्ट पब्लिश की थी कि इस पूरे दंगे में सिर्फ दो दिनों में 127 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। वहीं लाहौर से निकलने वाले अखबार दैनिक 'इंक़लाब' में मरने वालों की संख्या 105 बताई गई थी और उसने भी 300 लोगों को घायल बताया था।
पाकिस्तान का सबसे बड़ा दंगा
University of Central Arkansas ने पाकिस्तान में दंगों को लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की है "Pakistan (1947-present)" नाम से, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में हुए सबसे बड़े दंगों का जिक्र किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 7 अक्टूबर 1958 को राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने संविधान रद्द कर राष्ट्रीय सभा को भंग कर दिया और देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया। अगले दिन उन्होंने जनरल मोहम्मद अयूब खान को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया। 27 अक्टूबर 1958 को अयूब खान ने इस्कंदर मिर्जा को इस्तीफा देने पर मजबूर कर सत्ता अपने हाथ में ले ली।
14 फरवरी 1960 को अयूब खान 96 प्रतिशत वोटों से राष्ट्रपति चुने गए और 17 फरवरी को उन्होंने पद संभाला। 1960-61 में जातीय और राजनीतिक हिंसा में करीब 1,000 लोगों की मौत हुई। 1 मार्च 1962 को अयूब खान ने नया संविधान मंजूर किया, जो 7 जून 1962 से लागू हुआ। 8 जून को उन्होंने मार्शल लॉ खत्म कर राजनीतिक दलों पर लगी रोक हटा दी। इस पूरी उथल-पुथल में लगभग 1,500 लोगों की जान गई।
साल 1962 से 1969 तक का दंगा
जून 1962 से मार्च 1969 के बीच पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और विरोध प्रदर्शनों के दौरान लगभग 159 लोगों की मौत हुई। जनवरी 1965 में कराची दंगों में करीब 20 लोग मारे गए, जबकि 1968-69 के छात्र और राजनीतिक प्रदर्शनों में हिंसा तेजी से बढ़ी। नवंबर 1968 में चार छात्रों की मौत हुई, जनवरी 1969 में 14 लोग मारे गए और फरवरी से मार्च 1969 के बीच ढाका, कराची, खुलना और अन्य शहरों में हुई झड़पों में 121 से ज्यादा लोगों की जान गई। लगातार बढ़ते विरोध और हिंसा के दबाव में राष्ट्रपति अयूब खान ने आखिरकार 25 मार्च 1969 को इस्तीफा दे दिया।
1971 पूर्वी पाकिस्तान आंदोलन
ढाका और अन्य शहरों में बंगाली राष्ट्रवाद के समर्थन में व्यापक प्रदर्शन हुए। पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के बाद यह आंदोलन बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में बदल गया। भाषा के विवाद से शुरू हुआ यह दंगा बांग्लादेश को अलग देश बनाकर शांत हुआ।
ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ आंदोलन
पाकिस्तान नेशनल अलायंस ने चुनाव धांधली के आरोपों पर विरोध शुरू किया। प्रदर्शन हिंसक हो गए और नतीजतन जनरल जिया-उल-हक ने 5 जुलाई 1977 को मार्शल लॉ लगा दिया।
1983 में विरोध प्रदर्शन
जिया-उल-हक की तानाशाही के खिलाफ सिंध में बड़े स्तर पर लोकतंत्र बहाली आंदोलन हुआ। सेना ने इसे दबाया, सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी और मौतें हुईं। पाकिस्तान के Dawn की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें दर्जनों लोगों की जान चली गई थी।
2014 - इमरान खान और ताहिर उल क़ादरी का धरना
इस्लामाबाद में "आजादी मार्च" और "इंकलाब मार्च" के नाम से महीनों लंबा विरोध चला, जिसमें सरकार पर चुनावी धांधली के आरोप लगे।
2023 - इमरान खान की गिरफ्तारी पर दंगे
इमरान खान की NAB द्वारा गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के कई शहरों में आगजनी, झड़पें और हिंसा हुई। सेना के ठिकानों तक पर हमले हुए।
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