जुन्नाारदेव। नगर के राज राजेश्वरी मंदिर में शुक्रवार को दिव्य पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का प्रकट उत्सव मनाया गया। इस अवसर पर मंदिर परिसर में स्वामी केअनुयायियों द्वारा पादुका पूजन किया गया। पादुका पूजन मंदिर परिसर में दूध, घी, शहद, बेलपत्र, पुष्प, पंचामृत इत्यादि सामग्री के द्वारा पादुका पूजन किया गया। इसके पश्चात मंदिर में रुद्राभिषेक कर उनकी स्वास्थ्य व दीर्घायु की कामना की गई। कार्यक्रम में पंडित प्रीतम शास्त्री, पंडित वृंदावन दुबे, देव कुमार पटवा, दीपक प टवा, मोहन शर्मा, सीपी शर्मा, रामकुमार बघेल, प्रदीप शर्मा, आलोक मुखर्जी ,राजीव श्रीवास्तव सहित अन्य धर्मावलंबी इस दौरान उपस्थित थे।
पति की लंबी उम्र की कामना के साथ महिलाओं ने रखा हरितालिका व्रत
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महिलाओं ने की पूजा अर्चना
जुन्नाारदेव। पति की दीर्घायु की कामना के साथ महिलाओं ने शुक्रवार को हरितालिका व्रत रखा। भाद्रपद की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का त्योहार जाता है। महिलाओं द्वारा घरों में फुलेरा बांध कर मंडप सजाकर माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा अर्चना की गई। महिलाओं ने पूरे दिन निर्जला रहकर भोलेशंकर की आराधना कर अखंड सौभाग्य की कामना की। वहीं कुंवारी स्त्रियों ने भी यह व्रत रखकर इच्छित वर की कामना की। शुभ मुहूर्त में घरों में महिलाओं ने तीज व्रत पूजन किया। विधान के अनुसार व्रती महिलाओं ने रातभर जागकर भगवान शिव व माता पार्वती का स्मरण किया। महिलाओं द्वारा प्रातः नदी से गौर (रेत) लाने की परंपरा का निर्वाह किया गया।
क्या है पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार हरतालिका तीज माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था, माता का या कठोर तप देखकर शंकर भगवान ने उन्हें अपने दर्शन दिए थे। पुराणों के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के रखा था, इसलिए इस दिन की पूजा का खास महत्व होता है। हरतालिक तीज को तीजा भी कहते हैं।
पुराणों में कहते हैं कि इस दिन माता पार्वती ने शिव जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए ये कठोर व्रत रखा था, इसलिए इस दिन दोनों की ही पूजा की जाती है। मानते हैं कि माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की थी कि उन्हें पति के तौर पर भगवान शिव ही प्राप्त हों। माता ने ये व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में रेत से शिवलिंग बनाया था औऱ रात पर जाकर भोलेनाथ की पूजा की थी। माता का या कठोर तप देखकर शंकर भगवान ने उन्हें अपने दर्शन दिए थे। भोलेशंकर ने पार्वती जी को अखंड सुहाग का वरदान दिया और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।