Gotmar Mela 2020 छिंदवाड़ा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। मप्र के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में कोरोना के भय और प्रशासन की बंदिश के बावजूद बुधवार को गोटमार मेले का आयोजन हुआ। परंपरागत रूप से दो पांढुर्णा व सावरगांव के लोगों ने एक-दूसरे पर खूब पत्थर बरसाए, जिसमें 110 लोग घायल हो गए। मेला स्थल पर 500 से ज्यादा पुलिसकर्मी और कई अधिकारी मौजूद थे, लेकिन वह भी मूकदर्शक बने रहे।
धरी रह गई रोकने की तैयारी
इस बार कोराना के संक्रमण को देखते हुए गोटमार मेले पर छिंदवाड़ा जिला प्रशासन ने प्रतिबंध लगाया था। मंगलवार को कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारियों ने बैठक ली थी, जिसमें बुधवार को होने वाले मेले को रोकने को लेकर तैयारी की गई थी।
इसके लिए दो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, सात एसडीओपी, दस थाना प्रभारी, 30 एसआइ, 50 एएसआइ और लगभग 500 एसएफ, होमगार्ड, वन विभाग और जिला पुलिस बल तैनात किए गए थे।
पुलिस निगरानी करती रह गई और पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जाम नदी के किनारे एकजुट होकर पत्थर बरसाते चले गए। हालांकि बंदिश के कारण हर साल की तरह इस साल घायलों के इलाज के लिए शिविर नहीं लगाए थे, जबकि पिछले साल 10 से 12 शिविर लगाए गए थे।
पत्थर हटवाए थे, फिर ले आए
छिंदवाड़ा के एसपी विवेक अग्रवाल के अनुसार उपचार के लिए शिविर नहीं लगने के कारण घायलों की संख्या का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन बताया जा रहा है कि 110 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। मंगलवार रात को क्षेत्र से पत्थर हटवा दिए गए थे। इसके बाद भी लोगों ने पत्थर जमा कर लिए थे। पुलिस जवानों ने लोगों को रोकने की कोशिश की तो वे भी पत्थरबाजी की चपेट में आए।
वर्षों पुरानी है मेले की परंपरा
बताया जाता है कि गोटमार मेले की शुरूआत 17 वीं इसवीं में हुई थी। मान्यता है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के ने सावरगांव की लड़की से चोरी-छिपे प्रेम विवाह कर लिया था। जब वह लड़की को लेकर जाम नदी पार कर रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने उन पर पत्थरों से हमला कर दिया था।
सूचना मिलने पर पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दिया। दोनों गांवों के लोगों द्वारा किए गए पथराव से प्रेमी जोड़े की मौत हो गई थी। इसके बाद दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का अहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर क्षेत्र में स्थित किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का हर साल आयोजन होता है।