
नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर: दिल्ली के अलावा सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले के पण्डोनगर गांव में भी एक 'राष्ट्रपति भवन' है। इसे देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के यहां रहने की याद में बनाया गया था। राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 22 नवंबर 1952 में इस जगह पर आए थे, जिसके बाद से इस घर को राष्ट्रपति भवन कहा जाने लगा।
विशेष संरक्षित पण्डो जनजाति के लोगों के साथ समय बिताने के साथ ही उन्होंने उन्हें गोद भी लिया था। उन्होंने यहां एक खैर का पौधा लगाया था। यह पौधा अब बड़ा वृक्ष बन चुका है। यह भवन पण्डो और कोरवा जनजातियों के साथ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के गहरे संबंध का प्रतीक है। इस भवन पर राष्ट्रपति भवन का बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर राष्ट्रीय चिह्न की अनुकृति भी अंकित है।

इस भवन की देखरेख पण्डो जनजाति के लोग ही करते हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जन्म तिथि तीन दिसंबर को प्रतिवर्ष यहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन यहां पण्डो जनजाति का सामाजिक सम्मेलन और दूसरे दिन जन्मदिवस समारोह हर्षोल्लास से मनाया जाता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु 20 नवंबर को अंबिकापुर आ रही हैं। अंबिकापुर से पण्डोनगर की दूरी 15 किलोमीटर है। राष्ट्रपति के प्रवास के कारण यह भवन एक बार फिर चर्चा में है।
पण्डोनगर का राष्ट्रपति भवन तीन छोटे कमरे का है। खप्परपोश इस मकान में सामने एक बरामदा भी है। अहाता से घिरे यहां के राष्ट्रपति भवन के चारों ओर हरियाली नजर आती है। अहाता के भीतर पेड़ -पौधे हैं। छोटा सा यह मकान बेहद आकर्षक नजर आता है। रंग-रोगन और साफ-सफाई का काम पण्डो जनजाति के लोग ही करते हैं। यहां डा राजेन्द्र प्रसाद के जीवन प्रसंगों से जुड़ी किताबों के अलावा दूसरी किताबें और उनकी तस्वीरों का संग्रह है।
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प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने आठ साल के जिस पण्डो बालक को अपनी गोद में बैठाया था, वे बसंत पंडो आज 80 बरस के हो गए हैं। वे बताते हैं कि प्रथम राष्ट्रपति के आगमन के दौरान उल्लास का माहौल था। सभी से उन्होंने खुलकर बात की थी। रहन-सहन,जीवन-शैली को प्रत्यक्ष देखा था। उन्होंने पण्डो जनजाति को गोद लेने की घोषणा की थी, तभी से पण्डो लोगों को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है। वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से बसंत पण्डो की मुलाकात भी कराई जाएगी।

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पण्डो समाज कल्याण समिति के प्रदेश कार्यवाहक अध्यक्ष उदय कुमार पण्डो ने कहा कि देश का दूसरा राष्ट्रपति भवन हमें गर्व की अनुभति कराता है। यह भवन पण्डो विशेष पिछडी जनजाति के लोगों के विकास और उनके जीवन शैली में आ रहे बदलाव का भी प्रतीक है। इसी पण्डोनगर के राष्ट्रपति भवन से देश के प्रथम राष्ट्रपति ने पण्डो जनजाति को गोद लिया था। तभी से हमें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र की संज्ञा के साथ विकास की मुख्यधारा से जोड़ने सरकारी योजनाओं,नौकरियों में प्राथमिकता मिलनी शुरू हुई।