
नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर: 20 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंबिकापुर पहुंचेंगी। यह वही अवसर है, जिसका इंतजार पंडो समाज पिछले सात दशकों से कर रहा था। क्योंकि इसी सरगुजा की धरती पर 1952 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद आए थे और उनके आगमन ने पंडो जनजाति के इतिहास में एक अनोखा अध्याय जोड़ा था।
उनके आगमन के बाद से ही पंडो समाज के लोगों को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाने लगा है। सन 1952 में तत्कालीन सरगुजा महाराज से भेंट के बाद प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उस क्षेत्र में पहुंचे थे, जहां पंडो परिवार जंगलों के बीच पेड़ों के नीचे झोपड़ियों में रहते थे।
राष्ट्रपति के आने की खबर पर पंडो लोग जंगलों से बाहर बुलाए गए थे। उसी भीड़ में एक छोटा बच्चा था जिसे सब ‘गोलू’ कहते थे। राष्ट्रपति ने उसे गोद में उठाया, नया कपड़ा पहनाया और स्नेहपूर्वक कहा ,अब इसका नाम बसंत होगा।
आज वही बसंत 80 साल के बुजुर्ग हैं। उनकी आंखों में आज भी उस पल की चमक उतनी ही जीवंत है। बसंत बताते हैं कि राष्ट्रपति जी ने मुझे गोद में बिठाया, हाफ पेंट और शर्ट पहनाया, उन्होंने सबसे पहले मुझे ही पहनाए थे कपड़े। तभी मेरा नाम बसंत हुआ। पहले सब मुझे गोलू बुलाते थे।
बसंत उस पल को यादकर बताते है कि उस दिन सभी लोगों को नए कपड़े दिए गए थे। राष्ट्रपति ने पंडो समाज को गोद लिया था। उस दौरान सभी को जमीन मिली थी। खेती के लिए संसाधन उपलब्ध कराए गए थे।
पंडो समाज के लोगों के लिए यह प्रसंग सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि गौरव है। उनके लिए बसंत सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरे समाज के सम्मान का प्रतीक हैं, जिसे देश के प्रथम राष्ट्रपति ने अपने हाथों से नाम दिया था।
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समुदाय के युवा बताते हैं कि बसंत नाना यह सुनकर बहुत खुश हैं कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंबिकापुर आ रही हैं। वह बार-बार कहते हैं कि मुझे उनसे मिलवा देना। आखिर उन्होंने ही मुझे गोद में लिया था, मेरा नाम रखा था।
राष्ट्रपति का सरगुजा आगमन पंडो समाज के लिए भावनाओं से भरा क्षण है। सभी की यही इच्छा है कि बसंत नाना को उनसे मिलवाया जाए। सरगुजा में राष्ट्रपति के आगमन के ऐतिहासिक क्षण ने पंडो समाज की उम्मीदों और यादों को फिर जीवंत कर दिया है। आठ साल की उम्र में राष्ट्रपति की गोद में बैठा वह बच्चा आज भी उस दिन को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सम्मान मानता है।