
नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर: पुलिस लाइन का वह शांत-सा प्रांगण सोमवार सुबह एक ऐसे पल का साक्षी बना, जिसे बस्तर ने दशकों तक सिर्फ सपने में देखा था। हाथ वही थे, जो कभी जंगलों की खामोशी में हथियार कस कर चलते थे, आंखें वही थीं, जिन्होंने डर, संशय और क्रूर संघर्ष की अनगिनत रातें देखी थीं। लेकिन आज, उन हाथों में बारूद नहीं… एक गर्म, सधी हुई मुस्कान और एक कप काफी थी।
जब नारायणपुर की फगनी, सुकमा की पुष्पा ठाकुर और बस्तर की आशमती ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की ओर बढ़ते हुए आत्मविश्वास और गर्व से भरे कदमों के साथ काफी के कप थमाए, तो यह क्षण किसी उद्घाटन समारोह से कहीं अधिक गहरा, भावनात्मक और बस्तर के भीतर पनप रहे नए जीवन का प्रतीक बन गया।
सरकार की पुनर्वास पहल से शुरू हुआ ‘पंडुम कैफे’ सिर्फ एक कैफे नहीं, बल्कि उनके जीवन में खुली खिड़की है जो वर्षों से छिपकर जंगल के अंधेरे में सांस लेते रहे। अब वही हाथ हिंसा के अध्याय को पीछे छोड़कर सम्मानजनक आजीविका की ओर बढ़ते हुए, कैफ़े प्रबंधन, ग्राहक सेवा और उद्यमिता की नई दुनिया समझ रहे हैं।
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि पंडुम कैफ़े बस्तर के सकारात्मक परिवर्तन का प्रेरक प्रतीक है। संघर्ष की राह छोड़ चुके ये युवा अब समाज में सेवा और सम्मान के रास्ते बना रहे हैं।
भावनाएं तब और गहरी हुईं जब एक पूर्व माओवादी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा कि बारूद की जगह काफी परोसना… हमारे लिए यह नया जन्म जैसा है। एक अन्य साथी ने स्वर मिलाते कहा, पहले परिवार का भविष्य धुएं में खो जाता था। आज हम मेहनत से घर चला रहे हैं, सपने देख रहे हैं।
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जब समर्पित माओवादियों ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, वन मंत्री केदार कश्यप, शिक्षा मंत्री गजेन्द्र यादव और जगदलपुर विधायक किरण सिंह देव को स्वयं काफी परोसी तो कपों से उठती भाप में सिर्फ काफी नहीं, विश्वास, सम्मान और नई शुरुआत की सुगंध थी।
बस्तर ने आज शांति को करीब से छुआ। ‘पंडुम कैफे’ में परोसा जाने वाला हर प्याला एक प्रतीक है, अतीत पर विजय का, टूटे रास्तों के जुड़ने का और उस भविष्य का जहां हिंसा नहीं, सहयोग और मानवता की भाप उठती है।