
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: सड़क दुर्घटना में घायल युवक को परिवार के साथ 100 बिस्तर वाले हॉस्पिटल ने सिम्स रेफर किया, लेकिन कमिशन के लालच में एम्बुलेंस चालक ने पीड़ित परिवार को सरकारी हॉस्पिटल बता कर निजी हास्पिल में छोड़ दिया। जबड़े का ऑरपेशन होने के बाद पीड़ित परिवार को पता चला की उनके बेटे का उपचार सरकारी नहीं निजी हॉस्पिटल में चल रहा है।
लाखों रुपए देने के बाद भी पीड़त परिवार से हॉस्पिटल प्रबंधन और रुपए की मांग कर रहा है। रुपए न देने पर उपाचर रोकने की धमकी दी जा रही है। पीड़ित परिवार ने कलेक्टर से गुजार लगाने पहुंचे, लेकिन रविवार होने की वजह से कलेक्टर कार्यालय बंद मिला तो परिवार मायुष होकर लौट गया।
परिजनों से मिली जानकारी के अनुसार, कोरबा निवासी दुर्गेश कुमार सड़क दुर्घटना में घायल हो गए। घटना का पता चला तो मां पूनीबाई पाटले 100 बिस्तर वाले हॉस्पिटल पहुंची, तो शासकीय हॉस्पिटल ने दुर्गेश को सिम्स रेफर कर दिया। एम्बुलेंस में बैठ कर जब परिवार सिम्स आ रहा था, इस दौरान एम्बुलेंस चालक परिवार को धोखे में रख कर व्यापार विहार स्थित स्वामी विवेकानंद निजी हॉस्पिटल ले गया और हॉस्पिटल को सरकारी बता दाखिल करवा दिया।
युवक का ऑपरेशन होने के बाद पता चला की जिस अस्पताल में वे हैं, वह सरकारी नहीं निजी हॉस्पिटल है। हॉस्पिटल प्रबंधन पहले 2 लाख मांग तो मां पूनी बाई ने मकान बेच कर रुपए दिए। उसके बाद और रुपए की मांग होने पर बहन दुर्गा जगत ने खेत बेच कर हॉस्पिटल प्रबंधन को अब तक 4 लाख रुपए दे चुकी है।
उसके बाद भी हॉस्पिटल प्रबंधन अब पीड़ित परिवार से 55 हजार जमा न करने पर उपाचर को रोकने की धमकी दे रहा है। पीड़ित परिवार मदद की गुहार लगाने कलेक्टर कार्यालय पहुंचा लेकिन कार्यालय बंद होने की वजह से परिवार मायुष होकर लौट गया।
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पीड़ित परिजन पूनी बाई ने बताया कि वह पढ़ी लिखी नहीं हैं, जब वह हॉस्पिटल पहुंची तो बेटा गंभीर हालत में था, किसी तरह हास्टिल के कर्माचारियों की सहायता से बेटे को एंबुलेंस में बैठा कर निकले तो, ड्राइवर ने उन्हें झूठा भरोसा दिया कि यह भी सरकारी अस्पताल है। इलाज शुरू होने के बाद हॉस्पिटल प्रबंधन ने रुपए की मांगे तो कुछ रूपए परिवार ने जमा कर दिया। लेकिन बाद में जब आयुष्मान कार्ड दिखाया, तो प्रबंधन ने साफ कह दिया कि यहां आयुष्मान कार्ड नहीं चलता, पीड़ित परिवार के होश उड़ गए।
घायल दुर्गेश की बहन दुर्गा जगत ने बताया कि मां पढी लिखी नहीं है, आंख से भी ठीक से नदीं दिखाई देता। घटना के दिन जल्दबाजी में भाई को लेकर बिलासपुर आ गई। सिम्स में ले जाना था, लेकिन एम्बुलेंस चालक ने छल पूर्वक निजी हॉस्पिटल में कमिशन के लालच में फंसा दिया। घायल की जान बचाने के लिए, मां ने दर-दर सहायता मांगी नहीं मिलने पर घर बेच कर स्कूल में शिफ्ट हो गई, अब स्कूल वाले भी भगा रहे हैं। उपचार के लिए और रुपए की आवश्कता पड़ने पर खेत बेच कर हॉस्पिटल में रुपए दिए। अब अस्पताल प्रबंधन 55 हजार रुपये न देने उपाचर न करने की धमकी दे रहा है।
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पीडित परिवार ने कहा कि वे एम्बुलेंस रैकेट के मकडजाल में फंस कर बेघर हो चुके हैं। उन्हें लगता है कि एक संगठित रैकेट निजी हॉस्पिटलों के लिए काम कर रहा है। 108 और 112 जैसी आपातकालीन एंबुलेंस सेवाओं की आड़ में मरीज को शासकीय अस्पताल ले जाने के लिए निर्देशित किया जाता हैं, लेकिन वे निजी अस्पताल के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।