छत्तीसगढ़: चीतल के दाह संस्कार में पेट्रोल के उपयोग पर बवाल, रेंजर को नोटिस जारी
ग्राम पंचायत खोंगसरा के अमगोहन बाजारपारा स्थित सारगोड पुल के पास शनिवार दोपहर एक चीतल मृत अवस्था में मिला। रविवार को मृत चीतल का अंतिम संस्कार किया गया। इसको लेकर काफी बवाल मचा हुआ है।
Publish Date: Tue, 29 Jul 2025 02:44:55 PM (IST)
Updated Date: Tue, 29 Jul 2025 02:44:55 PM (IST)
बिलासपुर में चीतल को लेकर बड़ा बवाल मचा गया (फाइल फोटो)HighLights
- बिलासपुर में चीतल को लेकर बड़ा बवाल मचा गया
- चीतल को जलाने में पेट्रोल का उपयोग किया गया था
- रेंजर को नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब मांगा है
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: ग्राम पंचायत खोंगसरा के अमगोहन बाजारपारा स्थित सारगोड पुल के पास शनिवार दोपहर एक चीतल मृत अवस्था में मिला। रविवार को मृत चीतल का अंतिम संस्कार किया गया, लेकिन इस दौरान वन विभाग द्वारा पेट्रोल का उपयोग किए जाने पर विवाद खड़ा हो गया। इस लापरवाही को लेकर कोटा एसडीओ ने बेलगहना रेंजर को नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब मांगा है।
कैसे हुआ मामला सामने?
घटना की सूचना वन प्रबंध समिति के एक सदस्य ने शनिवार दोपहर करीब तीन बजे वन विभाग को दी। जानकारी मिलने पर डिप्टी रेंजर नरेंद्र सिंह बैसवाड़े टीम के साथ मौके पर पहुंचे और पंचनामा कार्रवाई पूरी की। इसके बाद मृत चीतल को वन विभाग के गोदाम में सुरक्षित रखा गया। पोस्टमार्टम के लिए पशु चिकित्सक डॉ. रघुवंशी को शाम चार बजे सूचना दी गई, लेकिन सूचना देर से मिलने के कारण वे मौके पर नहीं पहुंच सके।
रविवार को हुआ अंतिम संस्कार
अगले दिन यानी रविवार को चीतल का पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के दौरान पेट्रोल का इस्तेमाल करने पर ग्रामीण भड़क गए। उनका आरोप था कि वन विभाग ने गलत तरीके से दाह संस्कार किया। मामला उजागर होने के बाद विभाग के अधिकारी हरकत में आए।
एसडीओ की सख्ती
कोटा एसडीओ निश्चल शुक्ला ने रेंजर देव सिंह मरावी को नोटिस जारी कर तीन दिन के भीतर स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है। हालांकि मौखिक जवाब में रेंजर ने कहा कि लकड़ी गीली होने के कारण पेट्रोल का इस्तेमाल करना पड़ा।
विवाद क्यों हुआ?
अंतिम संस्कार के दौरान वन विभाग ने परंपरागत तरीके से दाह संस्कार न कर पेट्रोल का उपयोग किया। ग्रामीणों का कहना है कि यह प्रक्रिया वन्यजीव संरक्षण नियमों के खिलाफ है। मामले के सामने आने के बाद वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।