रीतेश पांडेय ~ नईदुनिया जगदलपुर, Jagdalpur News: हिंदू समाज में मान्यता रही है कि बेटी बाबुल की चौखट से विदा होती है, तो उसकी अर्थी ससुराल से निकलती है। भारतीय समाज में पति के स्वर्गवास के बाद पत्नी को जो वैधव्य पीड़ा भोगनी पड़ती है, उसका अहसास सिर्फ उसी को होता है।
बिलासपुर के देवांगन समाज के सीता-श्यामलाल देवांगन ने अपनी विधवा पुत्रवधू गायत्री का पुनर्विवाह करवाकर सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में भगीरथ प्रयास किया है। नगर में उनके इस कदम की सराहना की जा रही है।
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बहू के विवाह समारोह में देवांगन परिवार ने अपने सगे-संबंधी और समाज के लोगों को आमंत्रित किया। दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने पहुंचे लोगों से उन्होंने उपहार में केवल एक रुपये ही स्वीकार किया। इस अनुकरणीय पहल की चारों ओर चर्चा हो रही है।
विधवा बहू ने सास ससुर की बेटी के रूप में सेवा करते हुए एक उदाहरण पेश किया तो वहीं सास ससुर ने भी अपने विधवा पुत्रवधू को बेटी की तरह कन्यादान कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।