
नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर: माओवादियों के पुनर्वास में अगर विश्वास का सेतु है तो डिजिटल तकनीक का क्यूआर कोड उसका आधार स्तंभ बना है। माओवादियों की कहानी अब बंदूक से नहीं, संवाद से लिखी जा रही है। पिछले दस दिनों में पोलित ब्यूरो सदस्य और केंद्रीय क्षेत्रीय ब्यूरो प्रमुख भूपति तथा केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश उर्फ सतीश के नेतृत्व में 271 व रविवार को कांकेर जिले के अंतागढ़ क्षेत्र में उत्तर बस्तर डिवीजन के 20 माओवादी आनलाइन माध्यमों से संपर्क के बाद हथियार छोड़ मुख्यधारा में लौट चुके हैं।
प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सह गृह मंत्री विजय शर्मा ने पुनर्वास नीति को मानवीय और व्यावहारिक बनाने के लिए डिजिटल माध्यमों से माओवादियों से सुझाव मांगे थे। अब यह बात सामने आ रही है कि 291 माओवादियों की मुख्यधारा में वापसी में सुरक्षा बलों की चौतरफा कार्रवाई के साथ डिजिटल तकनीक से संवाद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सुझावों के आधार पर ही करीब छह माह पहले मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने माओवादी हिंसा से मुक्ति के लिए नई समर्पण एवं पुनर्वास नीति की घोषणा की थी। सरकार ने गूगल फार्म, दो क्यूआर कोड और एक ईमेल आईडी जारी की। उसके माध्यम से माओवादियों और आम नागरिकों ने अपने सुझाव भेजे। विजय शर्मा बताते हैं कि सरकार को दो हजार से अधिक सुझाव मिले। माओवादियों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए पुनर्वास नीति तैयार की गई। उनकी चिंता हिंसा छोड़ने के साथ सुरक्षित भविष्य की भी थी।
सरकार ने आत्मसमर्पण के लिए केवल अपील नहीं की, बल्कि बातचीत के लिए मंच भी दिया। माओवादियों को चिट्ठी, वीडियो काल और एन्क्रिप्टेड ईमेल के जरिए संपर्क करने का विकल्प मिला। शीर्ष माओवादी रूपेश समेत अन्य ने इन्हीं माध्यमों से अपनी इच्छा जताई और फिर स्थानीय प्रशासन से डिजिटल वार्ता के बाद आत्मसमर्पण किया। सरकार की रणनीति अब सिर्फ आपरेशन नहीं, बल्कि संवाद और पुनर्वास के संतुलन पर आधारित है।
क्यूआर (क्विक रिस्पांस) कोड एक डिजिटल कोड होता है, जिसमें लिंक या जानकारी एन्क्रिप्टेड रूप में रहती है। इसे मोबाइल कैमरा या स्कैनर ऐप से आसानी से पढ़ा जा सकता है। छत्तीसगढ़ गृह विभाग ने दो अलग-अलग क्यूआर कोड जारी किए थे। पहला, सुझाव देने वाले गूगल फार्म से जुड़ा है। दूसरा, पुनर्वास सहायता और संपर्क पेज पर ले जाता है। इसे स्कैन करने पर लिंक एचटीटीपीएस एन्क्रिप्शन के जरिए खुलता है, जिससे डेटा सुरक्षित रहता है।
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फार्म में दी गई जानकारी सरकारी सर्वर पर संरक्षित रहती है। कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान गुप्त रखते हुए सुझाव या संपर्क कर सकता है। पूरी प्रक्रिया सुरक्षित, गोपनीय और ट्रेसलेस रहती है। फार्म भरने या कोड स्कैन करने के बाद अधिकारी संबंधित व्यक्ति से ईमेल या वीडियो काल के जरिए संपर्क करते हैं। कई आत्मसमर्पण इन्हीं प्रारंभिक बातचीतों से आगे बढ़े।