संदीप तिवारी, नईदुनिया, रायपुर। प्रदेश की राजनीति में समीकरण लगातार बदलते रहे हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में दुर्ग संभाग सत्ता का केंद्र माना जाता था, तो अब सरगुजा संभाग नए शक्ति केंद्र के रूप में उभरा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार में हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सरगुजा प्रदेश का सबसे ज्यादा मंत्री देने वाला क्षेत्र बन गया है।
अंबिकापुर विधायक राजेश अग्रवाल के मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सरगुजा संभाग से कुल मुख्यमंत्री समेत 5 मंत्री शामिल हो गए। यह प्रदेश की राजनीति में पहली बार हुआ है जब सरगुजा संभाग से ज्यादा संख्या में मंत्री बनाए गए हों।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय स्वयं सरगुजा संभाग के कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। इनके अलावा रामविचार नेताम (रामानुजगंज), श्यामबिहारी जायसवाल (मनेन्द्रगढ़) और लक्ष्मी राजवाड़े (सूरजपुर) पहले से मंत्री पद संभाल रहे हैं। पांच मंत्रियों की मौजूदगी ने सरगुजा को सत्ता में निर्णायक भूमिका प्रदान कर दी है। मौजूदा समय में सरगुजा की बढ़ती भूमिका यह संकेत देती है कि आने वाले चुनावों में यही संभाग भाजपा की राजनीति का मुख्य आधार बनेगा।
पूर्ववर्ती भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार में दुर्ग संभाग राजनीति का केंद्र था। उस समय छह मंत्री इसी क्षेत्र से थे। पाटन विधानसभा से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं थे। उनके साथ कवर्धा से मोहम्मद अकबर, डौंडीलोहारा से अनिला भेड़िया, साजा से रविन्द्र चौबे, अहिवारा से रुद्र गुरु और दुर्ग ग्रामीण से ताम्रध्वज साहू कैबिनेट में शामिल थे। उस दौर में दुर्ग संभाग को सत्ता का गढ़ माना जाता था, लेकिन मौजूदा भाजपा सरकार में समीकरण पूरी तरह सरगुजा के पक्ष में बदल गए हैं।भाजपा ने क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधते हुए सरगुजा को प्राथमिकता दी है।
एक नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना हुई। राजधानी रायपुर के पुलिस ग्राउंड में मध्यप्रदेश से अलग होकर नए राज्य का गठन हुआ और अजीत जोगी को पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। उस समय 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 48, भाजपा के 36, बसपा के तीन, निर्दलीय दो और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास एक विधायक था। जोगी ने पहले मंत्रिमंडल में 29 मंत्रियों को शामिल किया। इसमें 24 मंत्री व कुछ राज्य मंत्री भी बनाए गए थे।
औसतन हर तीसरे विधायक को मंत्री पद मिला। जोगी कैबिनेट में राजेंद्र प्रसाद शुक्ला, रामचंद्र सिंहदेव, महेंद्र कर्मा, प्रेमसाय सिंह टेकाम, नंदकुमार पटेल, रविंद्र चौबे, सत्यनारायण शर्मा, गीतादेवी सिंह और अमितेष शुक्ला जैसे दिग्गज शामिल थे। गीतादेवी उस समय की एकमात्र महिला मंत्री थीं। राज्य मंत्रियों में भूपेश बघेल, मोहम्मद अकबर, मनोज मंडावी और ताम्रध्वज साहू को जिम्मेदारी मिली।दिलचस्प यह भी कि जोगी उस समय विधायक नहीं थे। वे बाद में भाजपा विधायक रामदयाल उइके से मारवाही की सीट खाली कराकर उपचुनाव जीते और सदन पहुंचे।
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने संविधान में संशोधन कर मंत्रियों की संख्या पर सीमा तय की थी। संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के तहत अनुच्छेद 164 में खंड 1(ए) जोड़ा गया। इसके अनुसार किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या विधानसभा सदस्यों के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। यानी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री समेत केवल 13 मंत्री ही बन सकते हैं। इस बदलाव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी को अपने कैबिनेट से रजिंदर पाल सिंह भाटिया, विक्रम उसेंडी, पूनम चंद्राकर, सत्यानंद राठिया और महेश बघेल को मंत्री पद से हटाना पड़ा।
2003 में भाजपा की पहली सरकार बनी तो डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में 18 मंत्रियों की टीम बनी। इसमें अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल, गणेशराम भगत, हेमचंद यादव और ननकीराम कंवर जैसे नाम शामिल थे। छह महीने बाद संवैधानिक प्रावधान लागू होने के बाद पांच मंत्रियों को हटाना पड़ा।
रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल 2008 में ननकीराम कंवर, रामविचार नेताम, पुन्नूलाल मोहिले, बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल, चंद्रशेखर साहू, लता उसेंडी, राजेश मूणत, विक्रम उसेंडी, हेमचंद्र यादव, केदार कश्यप मंत्री रहे।
वहीं 2013 के तीसरे कार्यकाल में राम सेवक पैकरा, अजय चंद्राकर, प्रेम प्रकाश पांडेय, रमशिला साहू, अमर अग्रवाल, भइयालाल राजवाड़े, पुन्नूलाल मोहिले, बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, केदार कश्यप, महेश गागड़ा, दयाल दास बघेल मंत्री रहे।
प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी और भाजपा की तीन बार की डा. रमन सरकार के दौरान मंत्रियों के वितरण में संतुलन था। पिछली कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में मंत्रियों के मामले में दुर्ग संभाग का दबदबा था, यहां सबसे अधिक मंत्री बनाए गए थे। वर्तमान में साय सरकार में सरगुजा से मुख्यमंत्री सहित सबसे अधिक मंत्री बनाए गए हैं। यह क्षेत्रीय दबदबा बढ़ाने का राजनीति में नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है।
- डॉ. अजय चंद्राकर, राजनीति विशेषज्ञ
पहले 13 से ज्यादा मंत्री हुआ करते थे। संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम, 2003 के तहत अनुच्छेद 164 में खंड 1(ए) जोड़ा गया। इस प्रविधान के अनुसार किसी भी राज्य के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
- चंद्रशेखर गंगराड़े, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा