
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर: महाराष्ट्रीयन महिला पद्मजा विजय कुमार लाड ने अपनी मातृभाषा मराठी के साथ-साथ हिंदी के प्रति अपने गहरे प्रेम और समर्पण से एक अनूठी मिसाल पेश की है। कोल्हापुर की रहने वाली पद्मजा ने विवाह के बाद रायपुर में कदम रखा, जहां हिंदी भाषी माहौल में उन्हें शुरुआत में थोड़ी झिझक हुई। लेकिन उन्होंने इस चुनौती को एक अवसर में बदल दिया।
पाक कला से लेकर बच्चों की शिक्षा तक, उन्होंने हर कदम पर हिंदी को अपनाया और उसे समृद्ध किया। आज वह न केवल अपनी दोनों बेटियों को हिंदी में पारंगत बना चुकी हैं, बल्कि महाराष्ट्र मंडल के माध्यम से अन्य लोगों को भी हिंदी का सहारा लेकर मराठी सिखा रही हैं।
पद्मजा लाड की शुरुआती शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई मराठी माध्यम से हुई, लेकिन उन्होंने बचपन से ही तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का अध्ययन किया। विवाह के बाद वह एक विशुद्ध मराठी परिवार में आईं, जो दशकों से रायपुर में रह रहा था। हालांकि, उनका परिवार केंद्र सरकार की नौकरी के कारण 150 वर्षों से महाराष्ट्र से बाहर था और हिंदी पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
संयुक्त परिवार के माहौल ने उन्हें हिंदी सीखने में बहुत मदद की। उनके पति और देवर बैंक अधिकारी थे, ननद व्याख्याता थीं और सास महिला मंडल में सक्रिय थीं। सभी को हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इस माहौल में पद्मजा को अपनी हिंदी को बेहतर बनाने का अच्छा अवसर मिला। उन्हें पाक कला का बहुत शौक था। जब विभिन्न समाजों के लोग उनसे मराठी व्यंजनों के बारे में पूछते तो वह हिंदी में बताने की कोशिश करतीं। धीरे-धीरे उनकी यह आदत बन गई और उन्होंने कई मराठी व्यंजनों को हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाया।
शिक्षा और भाषा का संगम
पद्मजा लाड ने अपनी दोनों बेटियों की पढ़ाई में भी हिंदी को अपनाया। उनकी बेटियां सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ती थीं और उन्होंने उन्हें बिना ट्यूशन के खुद पढ़ाया। पति की बैंक अधिकारी की नौकरी के कारण बार-बार स्थानांतरण होते रहे, जिससे उन्हें छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने न केवल अपनी हिंदी में सुधार किया, बल्कि बेटियों को पढ़ाते हुए संस्कृत का भी अध्ययन किया। आज उनकी दोनों बेटियां चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और मराठी, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में पारंगत हैं।
पद्मजा लाड ने अपनी पाक कला के माध्यम से भी हिंदी को समृद्ध किया। उन्होंने कई पाक कला प्रतियोगिताओं में पश्चिमी महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के व्यंजन बनाकर, उनकी विधि हिंदी में बताई और कई पुरस्कार जीते। वह कहती हैं, "हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपना स्थान बनाने में मुझे अपार आनंद होता है।" इसके अलावा, वह महाराष्ट्र मंडल रायपुर की आजीवन सदस्य हैं और पिछले कई सालों से मराठी सीखने के इच्छुक लोगों को मराठी सिखा रही हैं।
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इस कार्य के दौरान उन्हें हिंदी वर्णमाला और उच्चारण का सहारा लेना पड़ता है, क्योंकि उनके छात्र मराठी, हिंदी, सिंधी और उर्दू जैसी विभिन्न भाषाओं के हैं। इस तरह अपनी मातृभाषा सिखाने के लिए हिंदी का उपयोग करके उनकी अपनी हिंदी भाषा और भी समृद्ध हुई है। पद्मजा लाड का मानना है कि प्रांत और भाषाएं अलग-अलग होने के बावजूद, राष्ट्र की एकता के लिए राष्ट्रभाषा का विकास और समृद्धि आवश्यक है। पद्मजा लाड का यह सफर दिखाता है कि भाषाएं लोगों को जोड़ने का काम करती हैं और सही प्रयास से एक व्यक्ति अपनी मातृभाषा के साथ-साथ दूसरी भाषाओं को भी अपनाकर उन्हें समृद्ध बना सकता है।
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