अनिल मिश्रा, रायपुर। दशकों से नक्सल हिंसा की आग में झुलस रहे छत्तीसगढ़ के बस्तर को बचाने के लिए एक बड़ी पहल शुरू की गई है। रायपुर जिले के तिल्दा में शुक्रवार को मध्य भारत में शांति के लिए विकल्प संगम का शुभारंभ किया गया।
तीन दिन के इस आयोजन में पहले दिन तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि विभिन्न राज्यों के बुद्घिजीवी पहुंचे। सभी राज्यों से दस-दस प्रतिनिधि आमंत्रित किए गए हैं। इस संगम में गोंडी भाषी आदिवासी भी बड़ी संख्या में जुटे हैं।
तीन दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम का संयोजन शुभ्रांशु चौधरी ने किया है। आयोजन का उद्देश्य बस्तर और नक्सल प्रभावित अन्य इलाकों में शांति की पहल करना है। शुभ्रांशु चौधरी ने नईदुनिया से कहा-इसका आयोजन किसी व्यक्ति ने नहीं बल्कि हिंसा से चिंतित समूह ने किया है।
एकता परिषद और दूसरे संगठन इसमें सहयोग कर रहे हैं। आयोजन का उद्देश्य मुख्यधारा से किए जा रहे प्रयासों का विरोध करना नहीं है। हमारी कोशिश है कि शांति के लिए दूसरे विकल्प तलाशे जाएं।
पहले दिन सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों, भाजपा नेता और अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय, कांग्रेस नेता अरविंद नेताम समेत तमाम वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि नक्सल इलाकों में मची अशांति पर समाज की चुप्पी टूटनी चाहिए।
शांति की कोई पहल हो, इसका विकल्प तलाश किया जाए। यह भी कहा गया कि आदिवासी समाज को शांति प्रक्रिया में सहभागी बनाया जाए। उन्हें हिंसा के खिलाफ गोलबंद कर नेतृत्व सौंपा जाए।
आयोजन में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरद बेहार, छत्तीसगढ़ के प्रथम वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव, स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव की पत्नी मधूलिका बनर्जी, एक्टिविस्ट दुर्गा झा, पत्रकार श्रवण गर्ग, ललित सुरजन, बस्तर के आदिवासी नेता मनीष कुंजाम, रोहित प्रसाद आदि नामचीन हस्तियां जुटी हैं।
माओवादी आंदोलन के समर्थक माने जाने वाले प्रोफेसर हरगोपाल शनिवार को पहुंचेंगे। वक्ताओं ने कहा कि खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कह चुके हैं कि बातचीत होनी चाहिए। तो क्यों ने इसकी शुरूआत कराई जाए।
बोडोलैंड से लेंगे सबक
आयोजन में पूर्वोतर भारत के मिजो, नागा, बोडो आंदोलनों से जुड़े प्रतिनिधि भी पहुंच रहे हैं। शनिवार को बोडो आंदोलन के नेता आल बोडो स्टूडेंट यूनियन के प्रमोद बोड़ा आ रहे हैं।
उनसे यह समझने की कोशिश होगी कि बोडो आंदोलन में क्या सही और क्या गलत था। बोडोलैंड आटोनॉमस काउंसिल कैसे बना, वहां कैसे शांति स्थापित की गई। आयोजन में आदिवासियों का जीवन स्तर कैसे उठाया जाए, नक्सल इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य पर क्या काम हो जैसे विषयों पर गंभीर चर्चा होगी।