
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। स्मार्ट सिटी मिशन खत्म होने में अंतिम सात दिन बचे हैं। केंद्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार 31 मार्च से प्रोजेक्ट खत्म हो रहा है। ऐसे में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों का क्या होगा, वहीं बचे हुए आठ प्रोजेक्ट्स का काम कैसे कराया जाएगा, अब तक कुछ भी तय नहीं हुआ है।
अधिकारियों का कहना है कि वो भारत सरकार की गाइड लाइन का इंतजार कर रहे हैं। बता दें कि लगभग नौ वर्षों में स्मार्ट सिटी मिशन द्वारा शहर में लगभग 312 प्रोजेक्टों पर काम किया गया। इसके लिए स्वीकृत एक हजार करोड़ रुपये में 872 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
इसमें भी शहर के तीन तालाबों में बन रहे एसटीपी, 24 घंटे वाटर सप्लाई सिस्टम, शास्त्री बाजार, मटन मार्केट, गार्डन और जीई रोड डेवलमेंट का काम अब तक अधूरा है। साथ ही 100 से अधिक ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिनका संचालन व संधारण आज भी स्मार्ट सिटी कर रहा है, जिनके हैंडओवर को लेकर भी अब तक कोई दस्तावेज तैयार नहीं किए हैं।
खबर यह भी है कि स्मार्ट सिटी के उच्चाधिकारी 20 से 25 लाख के फंड की तलाश में जुटे हैं। दरअसल, मिशन की स्वीकृति के अनुसार, अब भी इनके पास 128 करोड़ रुपये बचे हुए हैं। यह पैसा डिमांड और दी गई राशि के खत्म होने की जानकारी पर मिल सकता है।
24 घंटे वाटर सप्लाई का प्रोजेक्ट पूरा होने में अभी वक्त लगेगा। ऐसे में इस प्रोजेक्ट के नाम पर इन्हें कुछ पैसा मिल सकता है, जिसकी कोशिश अंदर ही अंदर जारी है।

स्मार्ट सिटी में कार्यरत लगभग 50 से अधिक कर्मचारी इन दिनों उलझन में हैं। इनका समय रोजी-रोटी की चिंता पर बीत रहा है। कार्यालय में नौकरी करने तो आते हैं, लेकिन हर वक्त 31 मार्च के बाद क्या होगा, इसी पर चर्चा चलती है।
न तो जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इनको कोई जानकारी या आदेश दिया गया है और न ही शासन से कोई लेटर आया है। मिशन बंद होने की गाइडलाइन नजदीक आ गई है। ऐसे में इनकी रोजीरोटी बचेगी या खत्म हो जाएगी यह तो वक्त ही बताएगा। वैसे निगम में भी इन्हें अटैच किया जा सकता है।
रायपुर स्मार्ट सिटी के बंद होने का समय आ गया है, लेकिन 225 करोड़ के प्रोजेक्ट अभी भी अधूरे हैं। इसमें मुख्य रूप से महाराजबंध, नरैया और खो-खो तालाब में बन रहे तीनों एसटीपी, 24 घंटे पानी सप्लाई की योजना खास है।
चारों प्रोजेक्ट लगभग दो सौ करोड़ रुपए के हैं और तय समयावधि के अनुसार दो से तीन वर्ष पीछे चल रहे हैं। आलम यह है कि स्मार्ट सिटी के इन प्रोजेक्ट पर काम करने वाली एजेंसियां पूर्ण रूप से डिफाल्टर साबित हो चुकी हैं।
अधिकारियों की मेहरबानी के चलते अब तक इनको ब्लैकलिस्टेड नहीं किया जा सका है। एक तो इन्होंने समयसीमा पर काम पूरा नहीं किया है। साथ ही इनका कार्य भी गुणवत्ताहीन है।