नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। हिंदी के प्रसिद्ध कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को शनिवार को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। यह पुरस्कार पाने वाले वे 12वें हिंदी लेखक है। संभवत रायपुर में ही एक समारोह में उन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा।
छत्तीसगढ़ के किसी साहित्यकार को मिलने वाला यह पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार है। पुरस्कार के साथ 11 लाख रुपये, सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा। प्रख्यात कहानीकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय की अध्यक्षता में ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया।
समिति ने कहा है कि यह सम्मान उन्हें हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रदान किया जा रहा है।
बैठक में उपस्थित चयन समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा, अनामिका, डा. ए कृष्णा राव, प्रफ्फुल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म एक जनवरी, 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ था। वे परिवार के साथ राजधानी रायपुर के शैलेंद्र नगर में रहते हैं।
पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने कहा- 'मुझे भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल रहा है, यह जानकर खुशी हुई। अब तक मुझे जितने भी पुरस्कार मिले हैं, उन सभी ने मुझे खुशी दी है। मेरी दृष्टि से कोई भी पुरस्कार छोटा या बड़ा नहीं होता।'
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- 88 वर्षीय साहित्यकार ने कहा कि वे इसलिए लिखते हैं, क्योंकि उन्हें लिखना अच्छा लगता है, वह मन को सुख देता है। किसी बड़े बदलाव या सुधार की बात सोचकर नहीं लिखते।
- उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं जानता कि मेरे साहित्य से देश-दुनिया और किसी व्यक्ति ने क्या ग्रहण किया। मैं तो यह भी नहीं जानता कि घर के लोगों ने मेरे लेखन से क्या ग्रहण किया।
- जब लोग बताते हैं कि उन्हें अमुक रचना पढ़कर प्रेरणा मिली तो अच्छा लगता है। खुशी होती है कि किसी को प्रसन्न्ता दे सका।’ शुक्ल ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि आप जो नया सोच रहे हैं, वही लिखिए।
जो लिखा जा चुका है, वह आपका नहीं है। यह फिक्र न करें कि जो आपने सोचा, लिखा, उससे कितने लोग सहमत या असहमत होंगे।
आपकी मौलिकता कहीं-न-कहीं असर करेगी और वह सार्थक होगी। शुरू में हो सकता है कि उसे लोग हल्के में लें, लेकिन अगर आपने सार्थक लिखा है तो वह मान्य होगा। पहले भी मिल चुके कई अवार्ड
विनोद कुमार शुक्ल को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वर्ष 2023 में उन्हें मातृभूमि बुक आफ द ईयर अवार्ड और पेन अमरीका नाबोकाव अवार्ड भी मिल चुका है। इससे पूर्व गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार (उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी') मिला था। एक कविता संग्रह 'सब कुछ होना बचा रहेगा' (1992) शामिल हैं। उनका पहला कविता संग्रह 'लगभग जयहिंद' 1971 में प्रकाशित हुआ था।
उपन्यास पर बन चुकी है फिल्म
विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'नौकर की कमीज' पर वर्ष 1999 में फिल्मकार मणि कौल ने फिल्म बनाई थी। इस उपन्यास में एक आम सरकारी दफ्तर की कार्यप्रणाली को सूक्ष्मता से दिखाया गया है। लेखक ने एक ईमानदार क्लर्क की नजर से एक दफ्तर को देखने की कोशिश की है।
विनोद कुमार शुक्ल का परिचय
- विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था।
- उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय से पूरी की और प्राध्यापक के रूप में कार्य करते हुए साहित्य सृजन को अपना जीवन समर्पित किया।
- उनकी लेखन शैली को 'जादुई यथार्थवाद' के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो साधारण जीवन की गहरी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती है।
- वे कविता और गद्य दोनों में समान रूप से पारंगत हैं और हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।
- मध्यवर्गीय जीवन की बारीकियों को उनकी रचनाओं में अद्भुत ढंग से उकेरा गया है।
प्रमुख कृतियां
विनोद कुमार शुक्ल ने कविता, उपन्यास और कहानी संग्रह के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी कुछ प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं:
कविता संग्रह
- लगभग जय हिन्द (1971)
- वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह (1981)
- सब कुछ होना बचा रहेगा (1992)
- कविता से लंबी कविता (2001)
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उपन्यास
- नौकर की कमीज़ (1979) - जिस पर मणि कौल ने इसी नाम से फिल्म बनाई।
- दीवार में एक खिड़की रहती थी - साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
- खिलेगा तो देखेंगे
- हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़
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कहानी संग्रह
उनकी रचनाओं का कई भारतीय और विदेशी भाषाओं जैसे अंग्रेजी, जर्मन, इतालवी, मराठी और मलयालम में अनुवाद हो चुका है।
अब तक प्राप्त पुरस्कार
विनोद कुमार शुक्ल को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है। इनमें शामिल हैं:
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) - उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी के लिए।
- पेन/नाबोकोव पुरस्कार (2023) - अमेरिका में साहित्य का ऑस्कर माना जाने वाला यह पुरस्कार उन्हें हिंदी के पहले साहित्यकार के रूप में मिला।
- गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप - मध्य प्रदेश शासन द्वारा।
- राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान - मध्य प्रदेश शासन द्वारा।
- शिखर सम्मान - मध्य प्रदेश शासन द्वारा।
- रजा पुरस्कार - मध्य प्रदेश कला परिषद द्वारा।
- हिन्दी गौरव सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा।
- परिवार पुरस्कार (2012) - हिंदी काव्य साहित्य में योगदान के लिए।
- दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1997)।रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992)।
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प्रमुख साक्षात्कार
विनोद कुमार शुक्ल के साक्षात्कार उनकी सादगी और गहन चिंतन को दर्शाते हैं, जो साहित्य प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय रहे हैं। कुछ उल्लेखनीय साक्षात्कार:
- पीयूष दईया के साथ साक्षात्कार (समालोचन, 2014): इस साक्षात्कार में शुक्ल ने अपनी रचनात्मक प्रक्रिया, मणि कौल के साथ सहयोग और साहित्य-सिनेमा के संबंधों पर विस्तार से बात की। उनकी शैली को "राग की तरह निनादित" बताया गया।
- डॉ. प्रकाश उप्रेती के साथ साक्षात्कार (टीवी9 हिंदी, 2023): हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में 'राइटर इन रेजिडेंस' के दौरान लिया गया यह साक्षात्कार उनकी लेखन शुरुआत और कविताओं के प्रति उनके दृष्टिकोण को उजागर करता है। इसमें उनकी सादगी और गुमान से परे व्यक्तित्व की झलक मिलती है।
विनोद कुमार शुक्ल
- विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के कवि, कथाकार और उपन्यासकार हैं। 1 जनवरी 1937 को भारत के राज्य छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे श्री शुक्ल हिंदी साहित्य के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं।
उनकी एकदम भिन्न मौलिक लेखन शैली ने भारतीय और वैश्विक साहित्य को प्रभावित किया है। इसे 'जादुई यथार्थ' के रूप में महसूस किया जा सकता है। विनोद कुमार शुक्ल समकालीन हिंदी कविता को अपने मौलिक कृतित्व से सम्पन्नतर बनाया है और इसके लिए वे पूरे भारतीय काव्य परिदृश्य में अलग से पहचाने जाते हैं। वे कवि होने के साथ शीर्षस्थ कथाकार, उपन्यासकार भी हैं।
उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-दांचे का आविष्कार किया है।
मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों, काव्यशिल्प, कथन का साहित्य में समृद्धिकारी योगदान है। वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक माने जाते हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है। डेढ़ दशक से ज्यादा समय से बच्चे और किशोर, शुक्ल के लेखन के केंद्र में हैं।
बच्चों के लिए उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ और कविताएं रची हैं जिनके संग्रह प्रकाशित हैं। फिल्म और नाट्य विधा ने भी उनकी रचनाओं को आत्मसात किया है। उनकी कृतियों में बनी फिल्में वेनिस एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में चर्चित पुरस्कृत हुई हैं।
मनुष्य होने की विडंबना और चिंता के शांत और मितभाषी कवि, निपट मध्यवर्गीय दुनिया और उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी से एक अप्रत्याशित संसार गढ़नेवाले सर्जक विनोद कुमार शुक्ल को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
इनमें भारत सरकार का 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', मध्यप्रदेश शासन का 'राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान', मोदी फाउंडेशन का 'दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान', अमर उजाला का 'आकाशदीप अलंकरण' आदि प्रमुख हैं।
साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान 'महत्तर सदस्यता (फेलोशिप)' से सम्मानित किया है। अंतरराष्ट्रीय साहित्य में श्री शुक्ल के योगदान पर उन्हें वर्ष 2023 के 'पेन-नोबोकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर' से सम्मानित किया गया है।
उनकी रचनाओं के भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से श्री शुक्ल ने भारतीय एवं वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया है। 89 वर्षीय श्री शुक्ल निरंतर सृजनरत हैं।