देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज पुण्यतिथि है। उन्हीं के जीवन से जुड़ा एक प्रसंग है। बात उस समय की है जब हमारा देश आजाद हो चुका था और पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो चुके थे। उसी दौरान एक समारोह में शिरकत करने के लिए नेहरूजी लंदन पहुंचे, जिसमें विभिन्न देशों की गणमान्य हस्तियां पधारी थीं।

वहां पर नेहरूजी विभिन्न् नेताओं से मेल-मुलाकात कर रहे थे। तभी एक क्षण ऐसा आया, जब विंस्टन चर्चिल और नेहरू का आमना-सामना हुआ। हालांकि चर्चिल नेहरूजी की अकसर आलोचना किया करते थे, किंतु उस समारोह में दोनों नेता खुलकर मिले और विभिन्न् मुद्दों पर बातचीत की। दोनों ने परस्पर पुरानी यादें भी ताजा कीं। बातों ही बातों में चर्चिल ने नेहरूजी से कहा - 'यदि आप बुरा न मानें तो आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। प्रश्न थोड़ा निजी है।" इस पर नेहरूजी ने कहा - 'आप मुझसे जो भी पूछना चाहें, पूछ सकते हैं। मैं कतई बुरा नहीं मानूंगा।"

नेहरूजी की स्वीकृति पाकर चर्चिल बोले - 'जब आपके देश पर अंग्रेजों यानी हम लोगों का शासन था, उस दौरान आप कितने बरस तक जेल में रहे?" नेहरूजी ने जवाब में कहा - 'यही कोई दस वर्ष।" यह सुनकर चर्चिल बोले - 'हमारे लोगों ने आपके प्रति एक तरह का घृणित व्यवहार किया, उसके एवज में आपके मन में अंग्रेजों के प्रति किंचित गुस्से या नफरत की भावना तो होगी?"

इस पर नेहरूजी हल्के-से मुस्कराए और बोले - 'ऐसी कोई खास बात नहीं है। दरअसल हमने ऐसे नेता के अधीन रहकर कार्य किया है, जिससे हमें दो बातें सीखने को मिली हैं।" चर्चिल ने पूछा - 'कौन-सी दो बातें?" तब नेहरूजी ने कहा - 'पहली बात तो यह है कि हमेशा आत्मनिर्भर रहो, किसी से मत डरो। दूसरी बात यह है कि किसी को नफरत की निगाह से मत देखो। यही कारण है कि तब न तो हम आपसे डरते थे और न अब आपसे नफरत करते हैं।"

वस्तुत: भय और घृणा ऐसे दुर्भाव हैं, जो व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम कर उसे नकारात्मकता से भर देते हैं और नकारात्मकता सदैव बुरे परिणाम देती है। इसलिए इन दुर्भावनाओं से परे सकारात्मक ऊर्जा से आविष्ट होकर कर्म करें, वही लाभदायी होता है।

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