
डिजिटल डेस्क: बिहार चुनाव प्रचार रंग-बिरंगे अंदाज में चल रहा है और उम्मीदवार मतदाताओं को रिझाने के लिये नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। जिले में पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होना है और 4 नवंबर की शाम से प्रचार बंद हो जाएगा। ऐसे समय में उम्मीदवार हर संभव तरीके से वोट बैंक तक पहुंचने की कवायद में जुटे हुए हैं- कुछ सड़क पर बाइक रैली निकालते हैं, कुछ सोशल मीडिया के ज़रिये वोटरों से जुड़ने की कोशिश करते हैं, तो कई घर-घर जाकर सीधे लोगों से संपर्क कर रहे हैं।
कम उम्र के समर्थक और डिजिटल माध्यमों से जुड़े मतदाता अब चुनावी गतिविधियों का बड़ा हिस्सा बन गए हैं। एक महिला उम्मीदवार खुले तौर पर बुलेट बाइक चलाकर प्रचार कर रही हैं और क्षेत्र में समर्थकों के साथ घूमकर वोट मांग रही हैं। वहीं कई प्रत्याशी फेसबुक पेज बना कर सीधे मतदाताओं से संवाद कर रहे हैं और व्हाट्सएप के ज़रिये संदेश भेजकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
इंटरनेट पर प्रचार का क्रेज इतना बढ़ गया है कि कुछ उम्मीदवार हर दिन कम से कम दस-दीस रील्स बना कर विभिन्न प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर रहे हैं। इन रील्स और पोस्ट्स को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोलिंग भी हो रही है- कुछ लोग समर्थन में टिप्पणी कर रहे हैं तो कुछ आलोचना भी कर रहे हैं। कोई इन्हें बदलाव का प्रतीक बता रहा है, तो किसी ने मजाकिया ढंग से प्रतिक्रियाएं दी हैं।
लोकप्रियता के साथ-साथ रणनीति में भी बदलाव दिख रहा है। उम्मीदवार अब अपने जनसंपर्क अभियानों को पहले से और अधिक व्यवस्थित कर रहे हैं। एक दिन पहले पूरे अगली दिन के जनसंपर्क कार्यक्रम की टाइम-सारिणी तैयार कर ली जाती है और उसे इंटरनेट पर अपडेट किया जाता है। इस सूची में कार्यक्रम स्थल, संयोजक का नाम और समय तक की जानकारियां दी जाती हैं। पहले स्थानीय दौरे अक्सर आन-स्पॉट तय किए जाते थे, पर इस बार योजनाबद्ध पब्लिक आउटरीच पर जोर है।
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ज़िले में करीब 70 प्रतिशत से अधिक मतदाता इंटरनेट मीडिया से जुड़े हुए माने जा रहे हैं और यही वजह है कि सोशल मीडिया उम्मीदवारों के लिए अब अनिवार्य प्रचार मंच बन गया है। मतदाता जानकारी के लिये इन डिजिटल चैनलों का सहारा लेते हैं- उम्मीदवार भी यह समझ चुके हैं कि यदि वे इन माध्यमों पर सक्रिय नहीं रहेंगे तो उनका संदेश बड़े पैमाने पर नहीं पहुंच पाएगा।
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चुनावी माहौल में यह देखना रोचक होगा कि बाइक रैलियों, घर-बैर अभियानों और डिजिटल सामग्री में से किस रणनीति का असर सबसे ज़्यादा होता है। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को तय है 4 नवंबर की शाम तक प्रचार थमेगा और 6 नवंबर को मतदाता अपने निर्णय का इजहार करेंगे तब स्पष्ट हो जाएगा कि कौन-सा तरीका जमीन पर असरदार साबित हुआ।