
नईदुनिया प्रतिनिधि, बालाघाट। कोतवाली के मालखाने से लाखों रुपये चुराने के आरोपित प्रधान आरक्षक राजीव पन्द्रे व विकास श्रीवास्तव उर्फ लाला समेत चार आरोपित सोमवार को जेल भेजे गए। इस बहुचर्चित मामले में कई चौंकाने वाले राज सामने आए हैं।
सूत्रों के अनुसार, आरोपित प्रधान आरक्षक/मुंशी चालाकी से अपने मंसूबों को अंजाम दे रहा था। प्रभारी होने के कारण मालखाने की पूरी जिम्मेदारी उस पर थी। मुंशी, चालाकी से रकम से भरे सीलबंद लिफाफे को खोलता और मनचाही रकम निकालता था। किसी को शक न हो इसलिए वह लिफाफे की सील को चिपका देता था। मालखाने के सत्यापन में पुलिस अधिकारियों ने लिफाफों और डिब्बों की संख्या पर गौर किया, न कि लिफाफों में रकम पर। यही वजह रही कि मुंशी मनमर्जी करता रहा।
साइबर अपराध में जब्त 40 लाख रुपये की राशि पर मुंशी ने डाका डाला था। नवंबर में पुलिस अधीक्षक द्वारा मालखाने का सत्यापन होना है। मुंशी ये जानता था कि उसकी चोरी पकड़ी जा सकती है, इसलिए वह जुए में लगाई गई रकम जुटाने में लग गया, लेकिन इस बीच उसकी चोरी पकड़ी गई। उसने 21 दिनों में मालखाने में रखी 90 प्रतिशत राशि पार कर दी थी।
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बड़ा सवाल है कि मालखाने में इतनी बड़ी राशि लंबे समय तक क्यों रखी गई और सत्यापन या निरीक्षण में अधिकारियों ने राशि की कमी क्यों नहीं पकड़ी। इस पर बालाघाट पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस वर्ष मार्च में मालखाने का सत्यापन हुआ था। अगला सत्यापन नवंबर में होगा। मार्च में सीएसपी की अगुवाई में मालखाने का सत्यापन हुआ था। तब वहां जब्ती के पैसे जिन लिफाफों और डिब्बों में रखे थे, उनकी संख्या सही थी, इसलिए अधिकारियों को सत्यापन में खामी नहीं मिली।
पुलिस का कहना है कि नकदी या जेवर, तब तक मालखाने में रखा जाता है, जब तक उस प्रकरण का चालान कोर्ट में पेश नहीं किया जाता। मालखाने में रखी नकदी और जेवर विधिवत प्रक्रिया और कोर्ट के आदेश के बाद ही जमा कराई जाती है।