योगेश कुमार गौतम, नईदुनिया, बालाघाट: बालाघाट में ‘विकास' और ‘सुरक्षा' से माओवाद दम तोड़ रहा है। बिरसा जनपद के दुल्हापुर पंचायत का 65 कच्चे-पक्के मकानों का राशिमेटा गांव कभी माओवादियों का अड्डा हुआ करता था। माओवादी संगीता और संपत इसी गांव से हैं, जिस कारण माओवादी कभी-भी राशिमेटा आ जाते, राशन-पानी मांगते और ग्रामीणों को डराते-धमकाते थे।
बता दें कि यहां कभी माओवादियों का खौफ था, उनकी दहशत ऐसी थी कि सुरक्षा जवान भी यहां आने से कतराते थे। लेकिन अक्टूबर 2024 में सीआरपीएफ की सातवीं बटालियन के जवानों की तैनाती ने माओवादियों की कमर तोड़ दी। सीआरपीएफ कैंप खुलने के बाद क्षेत्र में अनेक सकारात्मक बदलाव आए हैं।
इन सकारात्मक बदलावों को जानने ‘नईदुनिया’ पहुंचा माओवादी संगीता और संपत की जन्म स्थली राशिमेटा। यहां ग्रामीणों ने स्वीकारा कि कैंप खुलने से वो अब चैन की सांस ले रहे हैं।
नई दुनिया से बात-चीत के दौरान ग्रामीण टेकू, मनोज, धुवन ने बताया कि राशन, सब्जी, तेल के लिए माओवादियों का राशिमेटा में आ धमकना सामान्य था। कभी ग्रामीणों को डरा-धमकाकर, तो कभी उनके हितैषी बनकर माओवादी गांव में राशन-पानी के लिए बेखौफ आते-जाते थे।
ये भी पढ़ेंः Naxalism in Chhattisgarh: डर का दूसरा नाम डीआरजी...इससे खौफ खाते हैं माओवादी
ग्रामिणों ने बताया कि, उनके लिए राशिमेटा और यहां के ग्रामीण हमेशा ‘साफ्ट टारगेट' रहे हैं। हथियारबंद माओवादी हमें डरा-धमकाकर दाल, चावल, आटा ही नहीं तेल, नमक, सब्जी, प्याज, आलू तक ले जाते थे। मनाकरने पर बंदूक का डर दिखाते थे।
कैंप खुलने के बाद ग्रामीणों में हौसला जागा है। ग्रामीण अब बेखौफ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जवानों की तैनाती से सकारात्मक बदलावों ने राशिमेटा और आसपास के गांवों की दशा-दिशा बदल दी है। ग्रामीण खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। पक्की सड़क, मोबाइल टावर जैसे विकास कार्यों से आदिवासियों का जीवन आसान हुआ है। अब देर रात तक इस गांव से वाहन गुजरते हैं। विद्युत आपूर्ति से सड़कें और घर रोशन हैं।
ये भी पढ़ेंः इंदौर में गैंगरेप के आरोपी शूटिंग एकेडमी चलाने वाले मोहसिन का भाई इमरान भी गिरफ्तार
बालाघाट पुलिस अधीक्षक नगेंद्र सिंह ने नईदुनिया से बाच-चीत के दौरान बताया कि, जिलेभर में सीआरपीएफ और हॉकफोर्स के करीब 25 कैंप हैं। राशिमेटा संवेदनशील क्षेत्र रहा है। माओवादी संगीता और संपत इसी गांव से हैं। पहले यहां माओवादियों की दहशत थी। राशन-पानी के लिए माओवादी डरा-धमकाकर अपनी मांग पूरी करते थे।
अब सीआरपीएफ जवानों की मौजूदगी ने माओवादियों ने मंसूबों को विफल किया है। राशिमेटा में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने अपील की है कि, माओवादी आत्मसमर्पण करें और समाज की मुख्य धारा में आएं।