नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) की कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी) भर्ती में शामिल होने के दौरान युवक की मौत हो गई। वह पांच किलोमीटर दौड़ पूरी कर फिनिश लाइन के पार पहुंचा ही था कि उसकी तबीयत बिगड़ गई। प्राथमिक उपचार के बाद सीआइएसएफ की मेडिकल टीम ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया। वहां करीब नौ घंटे चले इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
डॉक्टरों ने मौत का कारण दिल का दौरा और ब्रेन डेड बताया है। भोपाल में शनिवार को भेल स्थित सीआइएसएफ केंद्र पर जीडी भर्ती की शारीरिक दक्षता परीक्षा में गुना जिले के चाचौड़ा क्षेत्र स्थित बोड़दा गांव का 24 वर्षीय सुनील गुर्जर शामिल हुआ था। उसके साथ परीक्षा में शामिल हुए दोस्त बनवारी ने बताया कि 25 मिनट में पांच किलोमीटर की दौड़ पूरी करनी थी। सुबह करीब सवा 10 बजे दौड़ शुरू हुई, सुनील ने 22 मिनट में दौड़ पूरी कर ली थी।
सामान्यत: दौड़ पूरी करने के बाद धावक कुछ दूर तक दौड़ते हुए रुकते हैं, लेकिन सुनील फिनिश लाइन के चार कदम आगे ही अचानक रुक गया। वहां सुनील को उल्टी हुई, उसने कहा कि घबराहट हो रही है और नीचे गिर पड़ा। सीआइएसएफ की ओर से इस घटना पर कोई अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है। पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद मामला जांच में लिया है।
इस हादसे से परिवार की उम्मीदों की लाठी टूट गई। मृतक सुनील ने स्नातक तक पढ़ाई की थी। उसके पिता हरिचरण गुर्जर खेती और मजदूरी से परिवार चलाते हैं। दो भाइयों में सुनील का बड़ा भाई अरविंद पेट्रोल पंप पर काम करता था। सुनील करीब छह वर्ष से गुना में रहकर भर्ती की नियमित तैयारी कर रहा था।
चचेरे भाई राहुल ने बताया कि केंद्रीय सुरक्षा बल में पिछले वर्ष लिखित परीक्षा में कम अंक आने के कारण सुनील मेरिट में नहीं आ पाया। इस बार उसने जमकर तैयारी की। फरवरी में हुए लिखित पेपर में उसे 160 में से 132 अंक प्राप्त हुए थे। फिजिकल के लिए वह काफी मेहनत कर रहा था, रोजाना पांच किलोमीटर दौड़ता था।
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कार्डियोलाजिस्ट डॉ. अवधेश खरे ने कहा कि दौड़ते समय या वर्कआउट के दौरान एड्रिनलीन का स्तर काफी बढ़ जाता है, जो दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर को अचानक बहुत बढ़ा देता है। इससे दिल को ज्यादा ऑक्सीजन और रक्त पंप करने की जरूरत पड़ती है। दिल की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है। इसी प्रक्रिया के दौरान वेंट्रीकुलर टेकार्डिया या वेंट्रीकुलर फिब्रिलेशन होता है और हार्ट अटैक आता है। इन परिस्थितियों में डीसी शाक या सीपीआर थैरेपी देना चाहिए, जिससे कंट्रोल किया जा सकता है।