
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। एक उपभोक्ता ने पत्नी के साथ संयुक्त खाता के तहत प्रधानमंत्री योजना अंतर्गत जीवन ज्योति बीमा पॉलिसी ली थी। इस पॉलिसी के तहत खाताधारक की मौत के बाद दो लाख रुपये का बीमा धन मिलना था, लेकिन उपभोक्ता की पत्नी की मौत के बाद उन्हें बीमा धन का लाभ नहीं मिला। बीमा कंपनी का कहना था कि खाता उपभोक्ता के नाम का नहीं था। ऐसे में उन्हें बीमा राशि नहीं दी जा सकती। उपभोक्ता ने इस मामले की शिकायत जिला उपभोक्ता आयोग में की।
आयोग के अध्यक्ष योगेश दत्त शुक्ल व सदस्य प्रतिभा पांडेय की बेंच ने उपभोक्ता के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए 330 रुपये प्रीमियम के बदले बीमा धन राशि दो लाख रुपये और आठ हजार रुपये मानसिक क्षतिपूर्ति राशि देने का आदेश दिया। दरअसल, रचना नगर निवासी भास्कर कोरडे ने भोपाल को-ऑपरेटिव सेंट्रल बैंक लिमिटेड और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के खिलाफ याचिका लगाई थी।
जिसमें शिकायत की थी कि उन्होंने प्रधानमंत्री योजना अंतर्गत 30 मई 2015 को जीवन ज्योति बीमा पॉलिसी ली थी। इसके लिए उपभोक्ता के खाते से तीन साल तक 330 रुपये प्रीमियम राशि भी बैंक द्वारा काटी गई। इस बीच उपभोक्ता की पत्नी की मृत्यु 28 अगस्त 2017 को हो गई। पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने बीमा धन राशि के लिए दावा प्रस्तुत किया तो उसे निरस्त कर दिया गया।
आयोग में एलआइसी ने तर्क रखा कि बैंक के द्वारा एक साथ कई बीमार्थियों की सूची के साथ प्रीमियम राशि भेजी जाती है। जिसके बाद एलआइसी द्वारा एक मास्टर पॉलिसी जारी की जाती है। इस कारण उनका बीमा निरस्त किया गया। उनकी पत्नी के नाम पर कोई बीमा नहीं था। वहीं बैंक ने तर्क रखा कि उपभोक्ता के नाम पर पॉलिसी थी। उनकी पत्नी नॉमिनी थी। इस कारण उनके नाम पर प्रीमियम का भुगतान किया गया। आयोग ने बैंक को दोषी माना और 330 रुपये प्रीमियम राशि के बदले 2.08 लाख रुपये का हर्जाना लगाया।
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