
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में विषाक्त कफ सीरप कोल्ड्रिफ से 24 बच्चों की मौत के मामले में आरोपित डॉ. प्रवीण सोनी और उसकी पत्नी की लालच का कारनामा सामने आया है। एसआइटी जांच में पुलिस को पता चला कि आरोपित खुद 10 प्रतिशत कमीशन एक कफ सीरप में लेता था जबकि 27 प्रतिशत कमीशन मेडिकल स्टोर संचालित करने वाली उसकी पत्नी ज्योति लेती थी। यानी दाम में भी लूट थी।
89 रुपये कीमत वाले एक फाइल कफ सीरप में 42 रुपये तो इन्हीं दोनों के बीच कमीशन में बंट जाता था। उत्पादक कंपनी के मार्केटिंग, परिवहन आदि अन्य खर्च को भी सम्मिलित कर लें तो यह 50 से 60 रुपये तक हो सकता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कंपनी ने सीरप के उत्पादन में गुणवत्ता पर कितना ध्यान दिया होगा।
पीड़ितों ने पुलिस को बताया है कि सोनी के मेडिकल स्टोर से दवा के दाम में एक रुपये की भी रियायत नहीं मिलती थी। पुलिस ने कोल्ड्रिफ कफ सीरप बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मा में सीरप बनाने के लिए उपयोग होने वाले प्रोपेलीन ग्लायकाल (डीईजी) के आपूर्तिकर्ता शैलेष पंड्या से पूछताछ की है। उसने स्वीकार किया है कि फार्मा ग्रेड की जगह औद्योगिक ग्रेड वाले प्रोपेलीन ग्लायकाल की आपूर्ति की गई। इसी कारण सीरप जहरीला बना, क्योंकि इसमें डीईजी की मात्रा अधिक रहती है।
श्रीसन फार्मा के पास के न तो प्रोपेलीन ग्लायकाल के क्रय आदेश थे न ही आपूर्तिकर्ता का बिल। ऐसे में यह पता करना कठिन था कि खरीद किससे की गई थी। गिरफ्तार कंपनी मालिक जी रंगनाथन भी कोई जानकारी पुलिस को नहीं दे रहा था। इसी बीच पुलिस को एक क्यूआर कोड के माध्यम से 12 हजार रुपये भुगतान का पता चला। जिसे भुगतान हुआ था, पुलिस ने उससे पूछताछ की तो पता चला कि शैलेष पंड्या ने प्रोपेलीन ग्लायकाल के लिए भुगतान किया था। इस आधार पर पुलिस पंड्या तक पहुंची।
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पुलिस सूत्रों के अनुसार पंड्या ने इंड्रस्टियल ग्रेड का 50 लीटर प्रोपेलीन ग्लायकाल श्रीसन फार्मा को सप्लाई किया था, पर कंपनी के जिम्मेदार अधिकारियों ने कच्चे माल की जांच किए बिना ही उसका उपयोग कर लिया, जबकि ड्रग एक्ट में साफ है कि कच्चा माल और उत्पादित सामग्री दोनों की केमिकल एनालिस्ट, क्वालिटी कंट्रोल एनालिस्ट जांच करेंगे। लाइसेंस ही इस शर्त पर दिया जाता है।