
मुकेश विश्वकर्मा, भोपाल। बुढ़ापे की बीमारियों से परेशान लाखों लोगों के लिए भोपाल के सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जीएचएमसी) ने एक रिसर्च की है, जिससे यह साबित हुआ है कि होम्योपैथिक दवाएं 60 से 80 साल के बुजुर्गों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। इसमें 944 बुजुर्ग मरीजों को शामिल किया गया था, जिन्हें भूलने की बीमारी (डिमेंशिया), जोड़ों का दर्द, शुगर (डायबिटीज), ब्लड प्रेशर और लकवा (स्ट्रोक) जैसी गंभीर दिक्कतें थीं।
रिसर्च में मरीजों की सेहत में आए सुधार को मापने के लिए 'बार्थेल इंडेक्स' नाम के वैज्ञानिक पैमाने का इस्तेमाल किया गया। यह इंडेक्स एक तरह का स्कोरकार्ड है जो बताता है कि मरीज अपने रोजाना के काम (जैसे खाना, नहाना, चलना) कितनी आजादी से कर पा रहा है। इस रिसर्च में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने आर्थिक मदद (फंडिंग) दी थी। यह रिसर्च डॉ. सुनीता तोमर और डॉ. गरिमा तारे ने की।
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि होम्योपैथिक इलाज के बाद बुजुर्गों की हालत में सुधार आया। इलाज से पहले के स्कोर की तुलना में ''बाद'' के स्कोर में भारी अंतर देखा गया, जिसने साबित कर दिया कि यह सुधार दवा के सीधे और महत्वपूर्ण असर से हुआ है। चलने-फिरने की आजादी मिली। इलाज से पहले 134 मरीज चलने-फिरने में पूरी तरह असमर्थ थे या बिस्तर पर थे।
होम्योपैथिक उपचार के बाद यह संख्या घटकर मात्र सात रह गई। खाने की स्वतंत्रता रही। पहले 91 मरीज खुद खाना नहीं खा पाते थे, इलाज के बाद ऐसे मरीजों की संख्या घटकर सिर्फ आठ रह गई। व्यक्तिगत सफाई करने लगे। 146 मरीज जो पहले खुद नहाने में असमर्थ थे, उपचार के बाद उनमें से अधिकांश अपने व्यक्तिगत काम खुद करने लगे।
बार्थेल इंडेक्स एक स्कोरिंग सिस्टम है, जिसका उपयोग यह मापने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति रोज़मर्रा की कितनी गतिविधियां बिना किसी की मदद के यानी स्वतंत्र रूप से कर सकता है। इसमें 10 मुख्य कार्य (जैसे चलना, नहाना, खाना, शौचालय का उपयोग) शामिल होते हैं। उच्च स्कोर बेहतर आत्मनिर्भरता दर्शाता है।
इलाज के बाद बार्थेल इंडेक्स के स्कोर में बहुत अच्छा सुधार आया। इसका साफ मतलब है कि मरीज अब खुद अपने जरूरी काम करने लगे हैं। होम्योपैथी बुजुर्गों के लिए सबसे सुरक्षित है क्योंकि यह पूरे व्यक्ति का इलाज करती है और इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं। - डॉ. सुनीता तोमर (अधीक्षक व शोधकर्ता, जीएचएमसी)।