नईदुनिया, भोपाल: भ्रूण लिंग परीक्षण पर रोक, भ्रूण हत्या रोकने के तमाम प्रयास के बाद भी मध्य प्रदेश की स्थिति निराशाजनक बनी हुई है। भ्रूण हत्या, शिशु हत्या और माता-पिता द्वारा बच्चों को छोड़ने के मामले में देश में अव्वल राज्य मध्य प्रदेश है। NCRB की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में उक्त तीन प्रकृति के 196 मामले सामने आए हैं।
दूसरे नंबर पर 156 प्रकरणों के साथ महाराष्ट्र और तीसरे नंबर पर 112 प्रकरणों के साथ उत्तर प्रदेश है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भपात के कानूनी प्रविधानों को लेकर उचित जानकारी का अभाव और बच्चे के लिंग को लेकर सामाजिक दबाव इसकी बड़ी वजह है। एक समय था जब मध्य प्रदेश में शिशु लिंगानुपात 912 पर आ गया था। जानकारों ने इसकी वजह भ्रूण लिंग परीक्षण और गर्भपात को बताया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'लाड़ली लक्ष्मी' योजना प्रारंभ की। 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' सहित बेटियों के हित में कई योजनाएं प्रारंभ की गई, जिससे लोग उन्हें बोझ न मानें। इसके बाद भी प्रदेश का शिशु लिंगानुपात 917 है। यानी, प्रति हजार बेटों पर 917 बेटियां ही पैदा हो रही हैं, जबकि प्राकृतिक तौर पर यह आंकड़ा 950 से ऊपर होना चाहिए।
छह वर्ष से कम उम्र के 28 बच्चों की हत्या NCRB की रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि प्रदेश में वर्ष 2023 में छह वर्ष से कम उम्र के 28 बच्चों की हत्या कर दी गई। हत्या के सर्वाधिक मामले में मध्य प्रदेश देश में चौथे स्थान पर रहा। हत्यारों ने 1832 लोगों की जान ले ली, जिसमें 706 मामलों में विवाद के कारण हत्या की गई। 121 प्रकरणों में हत्या का कारण प्रेम प्रसंग और 103 में संपत्ति का विवाद रहा है। प्रेम प्रसंग के चलते हत्या की सर्वाधिक 227 घटनाएं उत्तर प्रदेश, 144 गुजरात और 138 महाराष्ट्र में हुईं। मध्य प्रदेश में 30-45 आयु वर्ग के 666 लोगों की हत्या हुई।
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ए्ससी के साथ दुष्कर्म के 560 मामले, देश में तीसरे नंबर पर एसटी के विरुद्ध सर्वाधिक अपराध के मामले में प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर तो है ही अनुसूचित जाति (SC) वर्ग की बच्चियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में भी प्रदेश तीसरे नंबर पर है। वर्ष 2023 में 560 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 176 में पीड़िता नाबालिग थीं।
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'सरकार अपने स्तर पर काम करती है लेकिन स्कूल, कालेज और समाज के स्तर पर जागरूकता के और प्रयास करने की आवश्यकता है। पहले कई कामों के लिए कहा जाता था कि लड़कियां यह नहीं कर सकतीं, पर अब पूरी तरह से साबित हो चुका है कि वे लड़कों से कहीं पीछे नहीं हैं। सिर्फ स्कूल और कालेज से ही शिक्षा नहीं होती समाज में जिस तरह का माहौल कई बार रहता है उसका भी असर पड़ता है। जैसे यह भी सोच रहता है कि लड़कियां बोझ बनेंगी, इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाए या गर्भपात करा दिया जाए। लोगों की सोच जब हर स्तर पर बदलेगी तो इस तरह की घटनाएं कम होंगी।'
- डॉ. विनय मिश्रा, भोपाल के मनोविज्ञानी