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राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। तीन दशक के संघर्ष के बाद मध्य प्रदेश माओवादी समस्या से मुक्त होता दिखने लगा है। सोमवार को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में मलाजखंड दलम के 12 माओवादियों के आत्मसमर्पण के बाद अब महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ (एमएमसी) जोन में माओवादियों की संख्या सिमट कर केवल छह पर आ गई है। शनिवार रात माओवादियों द्वारा बनाए गए कान्हा भोरम देव (केबी) दलम के 10 सदस्यों ने भी आत्मसमर्पण किया था। केबी दलम के सभी सदस्यों के समर्पण के बाद मंडला जिला लगभग इस समस्या से मुक्त हो गया है। केंद्र सरकार ने इसी वर्ष मंडला और डिंडौरी को माओवादी समस्या से कम प्रभावित जिलों की सूची में शामिल किया था।
अब एमएमसी जोन में केवल छह माओवादी बचे हैं, जिनमें दो मलाजखंड और चार दड़ेकसा दलम के हैं। बताया जा रहा है इनमें दो से तीन महिलाएं हैं। बचे माओवादियों में मुख्य नाम दीपक का है, जो बालाघाट जिले के ही पालागोदी गांव का रहने वाला है। बाकी सभी छत्तीसगढ़ या दूसरे राज्यों के हैं। पुलिस ने उन पर घेराबंदी बढ़ा दी है। सूत्रों का कहना है कि मारे जाने के डर से जल्द ही दीपक सहित बचे सभी माओवादी आत्मसमर्पण कर सकते हैं, जिसके बाद एमएमसी जोन माओवादी समस्या से मुक्त माना जाएगा।
सोमवार को समर्पण करने वालों में मुख्य नाम रामदेर का है, जो सेंट्रल कमेटी सदस्य था और उस पर एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। उसे खतरनाक माओवादियों की श्रेणी में माना जाता था। सबसे पहले सरेंडर करने वाली सुनीता भी उसी के दलम की थी। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि एक माह पहले तक दर्रेकशा और मलाजखंड के अतिरिक्त केबी दलम सक्रिय थे। दर्रेकशा दलम के 11 माओवादियों ने हाल ही में महाराष्ट्र के गोंदिया में आत्मसमर्पण किया था, जिसमें एमएमसी जोन का प्रवक्ता अनंत उर्फ विकास नगपुरे भी शामिल था। पुलिस का कहना है कि चार माओवादी अभी इस दलम में बचे हैं। इसी प्रकार, मलाजखंड दलम के 12 माओवादियों के समर्पण के बाद भी दो के बचे होने की बात पुलिस कह रही है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश सहित पूरे देश को माओवादी समस्या से 31 मार्च तक मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में पुलिस ने दबाव की रणनीति बनाई। इसके अंतर्गत ग्रामीणों को सुरक्षा का भरोसा दिया, पुलिस बल बढ़ाया गया, और विशेष सहयोगी दस्ते की भर्ती की गई। ज्यादा प्रभावित गांवों में पुलिस चौकियां स्थापित की गईं। पुलिस पर भरोसा बढ़ने के कारण ग्रामीणों ने माओवादियों का सहयोग करने से इन्कार कर दिया। उन्हें राशन देना, सूचना देना या अन्य तरह की मदद बंद कर दी गई। इस कारण माओवादी असहाय हो गए और उन्होंने हथियार डालना शुरू कर दिया।
एक माह पहले तक जिस बालाघाट और मंडला का नाम डर के साथ लिया जाता था, वहां अब लाल आतंक का भय समाप्त होता दिख रहा है। बालाघाट जिले में माओवादियों ने वर्ष 1988 के आसपास से जड़ें जमाना शुरू की थी। वर्ष 1991 में बालाघाट जिले में सीतापाला के जंगल में माओवादियों ने बड़ा विस्फोट किया था, जिसमें 20 से अधिक पुलिसकर्मी मारे गए थे, जिसके बाद सरकार गंभीर हुई। बाद में माओवादियों ने तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे की हत्या कर दी थी। विकास के साथ माओवादी विचारधारा कमजोर होने लगी। सरकार ने रणनीति बनाकर प्रभावित सभी राज्यों में एक साथ घेराबंदी की, जिससे अब सफलता मिली है।
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